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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...403 निम्न मंत्र कहकर सर्व ग्रहों पर वासचूर्ण डालें
ॐ घृणि चन्द्रां ऐं क्षौ ठः ठः क्षाँ क्षी सर्व ग्रहेभ्यो नमः। निम्न मंत्र कहकर सिंहासन पर वासचूर्ण डालें
ॐ हीं श्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः। निम्न मंत्र से अंजलिबद्ध दोनों पुरुषों पर वासचूर्ण डालें
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हद् भक्तेभ्यो नमः। निम्न मन्त्र पढ़कर दोनों चामर धारियों पर वासचूर्ण डालें
ॐ हीं चं चामरकरेभ्यो नमः। निम्न मंत्र बोलकर दोनों हाथियों पर वासचूर्ण डालें
ॐ ह्रीं विमलवाहनाय नमः। निम्न मंत्र कहकर दोनों मालाधारकों पर वासचूर्ण डालें
ॐ ह्री पुष्पकरेभ्यो नमः। निम्न मंत्र पूर्वक शंखधरों पर वासचूर्ण डालें
ॐ श्रीं शंखधराय नमः। निम्न मंत्र कहकर पूर्ण कलश पर वासचूर्ण डालें
ॐ पूर्ण कलशाय नमः। इस प्रकार परिकर के प्रत्येक चिह्नों पर तीन-तीन बार वासचूर्ण डालें।
• तत्पश्चात प्रतिष्ठित परिकर के आगे अनेक प्रकार के फल एवं नैवेद्य चढ़ाएँ।
• उसके बाद शुभ समय में परिकर को यथास्थान जोड़कर उस दिन अथवा तीसरे, पाँचवें या सातवें दिन में पंचामृत के द्वारा स्नात्र पूजा कर चैत्यवंदन करें।
• तदनन्तर प्रतिष्ठा देवता के विसर्जनार्थ एक लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें तथा पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें। फिर सौभाग्य मंत्र से न्यास कर पूर्ववत कंकण मोचन एवं नन्द्यावर्त विसर्जन आदि करें।
इस अवसर पर यथाशक्ति अष्टाह्निका महोत्सव करें, संघ पूजा करें एवं याचकों को दान दें।
जलपट्ट (फलक) प्रतिष्ठा- इस प्रतिष्ठा में जलपट्ट के ऊपर पूर्ववत बृहत् नंद्यावर्त की स्थापना करें। जलपट्ट को क्षीर-स्नान कराएँ। स्थापना की