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396... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन से युक्त स्नात्रकारों को आमंत्रित करें।
स्नात्रकारों के द्वारा सर्व दिशाओं में धूप दान एवं जलाच्छोटन पूर्वक बलि प्रक्षेपण करवाएं। बलि को निम्न मन्त्र से अभिमन्त्रित करें- 'ॐ हीं वीं सर्वोपद्रवं रक्ष-रक्ष स्वाहा।'
• फिर निम्न मन्त्रों से दिक्पालों को आमन्त्रित करेंपूर्व दिशा में : ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। आग्नेय दिशा में : ओं अग्नये सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। दक्षिण दिशा में : ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे आगच्छ
2 स्वाहा। नैऋत्य दिशा में : ॐ नैऋतये सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। पश्चिम दिशा में : ॐ वरूणाय सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। वायव्य दिशा में : ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे आगच्छ
2 स्वाहा। उत्तर दिशा में : ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। ईशान दिशा में : ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। अधो दिशा में : ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे
आगच्छ-2 स्वाहा। ऊर्ध्व दिशा में : ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय ध्वजारोपणे आगच्छ
2 स्वाहा। तत्पश्चात प्रतिष्ठा की निर्विघ्नता हेतु दसो दिशाओं में बलि दें। मुख्य बिम्ब की स्नात्र पूजा करें। फिर गुरु भगवन्त चतुर्विध संघ के साथ चार स्तुतियों से चैत्यवन्दन करें। इसी क्रम में शान्तिदेवता, श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता, शासनदेवता एवं समस्त वैयावृत्यकर देवों की आराधना के लिए एक-एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें और स्तुति बोलें।