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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...395 • उसके बाद उपस्थित श्रीसंघ अंजलि में अक्षत धारण किये हुए आचार्य के साथ ‘नमोऽर्हत्' पूर्वक मंगल गाथाओं का पाठ करें
जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोय चूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरियं तहा, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ।। जह सग्गस्स पइट्ठा, समत्थलोयस्स मज्झियारम्मि । आचंद सूरियं तहा, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ।। जह मेरूस्स पइट्ठा, दीव समुद्दाण मज्झियारम्मि । आचंद सूरियं तहा, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ।। जह जम्बुस्स पइट्ठा, जंबूदीवस्स मज्झियारम्मि । आचंद सूरियं तहा, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ।। जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झियारम्मि ।
आचंद सूरियं तहा, होउ इमा सुप्पइट्ठत्ति ।। • फिर हस्तगृहीत अक्षतों से कलश को बधायें। उसके बाद पुष्पांजलि का क्षेपण करें। आचार्य धर्मदेशना दें। फिर प्रासाद या मण्डप के ऊपर कलशारोपण करें। लाभार्थी परिवार को वस्त्र, कंकण आदि का दान दें, संघ की पूजा करें, साधुओं को आहार आदि दें, याचकों को संतुष्ट करें तथा अष्टान्हिका महोत्सव करें। यदि कलश पाषाण निर्मित हो तो चैत्य प्रतिष्ठा पूर्ण होने पर उसे भी तुरन्त स्थापित कर दें। इस प्रकार चैत्य प्रतिष्ठा के साथ उसकी प्रतिष्ठा भी पूर्ण हो जाती है। यह तो चैत्य प्रतिष्ठा से भिन्न समय में कलशारोपण करने की विधि है।30
॥ इति कलशारोहण प्रतिष्ठा विधि ।।
ध्वजारोहण प्रतिष्ठा विधि विधिमार्गप्रपा के उल्लेखानुसार ध्वज प्रतिष्ठा की विधि निम्न है
• सर्वप्रथम ध्वजादंड रखने योग्य भूमि की शुद्धि करें। फिर गन्धोदक एवं पुष्पादि द्वारा उस भूमि का सत्कार करें। सम्पूर्ण शहर में अमारि घोषणा करवाएँ। चैत्य प्रतिष्ठा की भाँति सकल संघ को आमन्त्रित करें, नूतन दण्ड एवं ध्वजा को रखने हेतु वेदिका बनवाएं, दिक्पालों की स्थापना करें, छहवलय युक्त नंद्यावर्त्त का आलेखन करें। तत्पश्चात अखण्ड वस्त्र को धारण किए हुए आचार्य पूर्ववत सकलीकरण और शुचिविद्या का आरोपण करें, पूर्वनिर्दिष्ट गुणों