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394... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
1. सर्वप्रथम चार कलशों से सुवर्ण स्नान 2. दूसरा सर्वौषधि स्नान 3. तीसरा मूलिका स्नान 4. चौथा गन्धोदक स्नान 5. पांचवाँ वासचूर्ण स्नान 6. छठा चन्दनोदक स्नान 7. सातवाँ कुंकुमोदक स्नान 8. आठवाँ कर्पूरोदक स्नान और 9. नौवाँ कुसुमोदक स्नान- इस क्रम से प्रतिष्ठाप्य कलश के नौ अभिषेक करें। • उसके बाद कलश के कंठ पर पंचरत्न एवं श्वेत सरसों की रक्षा पोटली
बांधें।
• तत्पश्चात 'ॐ अर्हत् परमेश्वराय इहागच्छतु- इहागच्छतु' मंत्र पूर्वक बाएँ हाथ में कलश लेकर दाएँ हाथ द्वारा उस पर चंदन का लेप करें। फिर पुष्प सहित मदनफल और ऋद्धि-वृद्धि युक्त कंकण का बंधन करें।
• उसके पश्चात कलश के पाँच अंगों का स्पर्श करें, कलश पर धूप उत्क्षेपण करें, स्त्रियाँ प्रौंखणक क्रिया द्वारा उसे बधाएँ। फिर आचार्य स्थापनीय कलश को निम्न पाँच मुद्रा के दर्शन करवाएँ- 1. सुरभि मुद्रा 2. परमेष्ठी मुद्रा 3. गरुड़ मुद्रा 4. अंजलि मुद्रा और 5. गणधर मुद्रा ।
फिर तीन बार सूरिमन्त्र द्वारा उसकी अधिवासना (स्थापना) करें। फिर 'ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा' इस मन्त्र से कलश को वस्त्र द्वारा आच्छादित करें। फिर पूर्ववत जम्बीर आदि फल, सप्त धान्य, पुष्प आदि प्रचुर मात्रा में चढ़ायें। • तदनन्तर निम्न श्लोक कहते हुए कलश की आरती उतारेंदुष्टसुरासुररचितं, नरैः कृतं दृष्टिदोषजं विघ्नम् । तद्गच्छत्वतिदूरंभविक, कृतारात्रिक विधानैः ।। फिर चैत्यवन्दन करें। फिर अधिवासना ( प्रतिष्ठा) देवी की आराधना के लिए एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें और पूर्णकर निम्न स्तुति कहेंपातालमन्तरिक्षं भुवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्रावतरतु जैने, कलशे अधिवासना देवी ।।
इसी क्रम में शान्ति देवता, अंबिका देवी एवं समस्त वैयावृत्यकर देवों के आराधनार्थ एक-एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग एवं उनकी स्तुति कहें ।
• फिर सभी दिशाओं में शान्ति बलि प्रदान करें। फिर शक्रस्तव द्वारा चैत्यवन्दन कर बृहद् शान्तिस्तव बोलें। फिर प्रतिष्ठा देवता की आराधना हेतु एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग कर निम्न स्तुति पाठ बोलें
यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वा सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्री जिनबिम्बं प्रविशतु, सदेवता सुप्रतिष्ठमिदम् ।।
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