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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...397 • तदनन्तर निम्न श्लोक कहकर ध्वज दण्ड पर कुसुमांजलि चढ़ावें रत्नोत्पत्तिर्बहुसरलता, सर्व पर्व प्रयोगः सृष्टोच्चत्वं गुणसमुदयो, मध्य गम्भीरता च । यस्मिन् सर्वा स्थितिरतितरां, देवभक्त प्रकारा तस्मिन् वंशे कुसुमवितति, भव्य हस्तोद्गतास्तु ।। फिर कलश की प्रतिष्ठा के समान ध्वजदण्ड पर चन्दन से लेप करें और फल-पुष्पादि से उसकी पूजा करें। • उसके बाद चाँदी निर्मित चार-चार कलशों से ध्वजदंड के पन्द्रह अभिषेक करें। उसमें क्रमश: 1. पहला स्वर्णोदक स्नान 2. दूसरा पंचरत्न स्नान 3. तीसरा कषायोदक स्नान 4. चौथा मृत्तिका जल स्नान 5. पांचवाँ मूलिका जल स्नान 6. छठा अष्टवर्गौषधि स्नान 7. सातवाँ सर्वौषधि जल स्नान 8. आठवाँ गन्धोदक स्नान 9. नौवाँ वास स्नान 10. दसवाँ चन्दनोदक स्नान 11. ग्यारहवाँ कुंकुमोदक स्नान 12. बारहवाँ तीर्थोदक स्नान 13. तेरहवाँ कर्पूरोदक स्नान 14. चौदहवाँ इक्षुरस स्नान 15. पन्द्रहवाँ घृत-दूध-दही स्नान- इस प्रकार पन्द्रह अभिषेक करें। इन अभिषेकों में पूर्ववत वाद्य नाद, गीत, छन्द, नमस्कार मन्त्र आदि का पूर्ण ध्यान रखें। • उसके पश्चात ध्वजदण्ड पर चन्दन का लेप करें, उस पर पुष्प चढ़ाएं। फिर प्रतिष्ठा की लग्न वेला आने परं ध्वजदण्ड को अखण्ड वस्त्र से आच्छादित करें। उसके बाद आचार्य पूर्ववत सुरभि आदि पाँच मुद्राओं के दर्शन करवाएं। चार नारियाँ ध्वजदण्ड को प्रौंखण क्रिया द्वारा बधायें। तदनन्तर उस पर वासचूर्ण का निक्षेप करते हुए एवं धूप देते हुए उसे अधिवासित करें। • तदनन्तर ध्वजदण्ड को 'ॐ श्रीं कण्ठः' इस मन्त्र से अभिमन्त्रित करें। फिर जवारारोपण, अनेक जातियों के फल, बलि, नैवेद्य आदि चढ़ाएँ। कलश आरती के छंद से ध्वज की आरती उतारें, किन्तु कलश के स्थान पर ध्वज का नाम लें। • फिर चार स्तुतियों से चैत्यवन्दन करें। शान्तिनाथ की आराधना के लिए एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग कर निम्न स्तुति कहें
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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