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384... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
स्वाहा 12. ॐ नमः सत्यायेभ्यः स्वाहा 13. ॐ नमः श्रेयस्करेभ्यः स्वाहा 14. ॐ नमः क्षेमंकरेभ्यः स्वाहा 15. ॐ नमः वृषभेभ्यः स्वाहा 16. ॐ नमः कामचारेभ्यः स्वाहा 17. ॐ नमः निर्वाणेभ्यः स्वाहा 18. ॐ नमः दिशान्तरक्षितेभ्यः स्वाहा 19. ॐ नमः आत्मरक्षितेभ्यः स्वाहा 20. ॐ नमः सर्वरक्षितेभ्यः स्वाहा 21. ॐ नमः मारुतेभ्यः स्वाहा 22. ॐ नमः वसुभ्यः स्वाहा 23. ॐ नमोऽश्वेभ्यः स्वाहा 24. ॐ नमः विश्वेभ्यः स्वाहा ।
पंचम वलय - पुनः एक मण्डलाकार परिधि बनायें। उसके बाहर पूर्वादि दिशाओं के मध्य में दो-दो कुल आठ गृह की रचना कर आठ इन्द्र-इन्द्राणियों के नाम लिखें- 1. ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा 2. तद्देवीभ्यः स्वाहा . ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा 4. तद्देवीभ्यः स्वाहा 5. ॐ चन्द्रादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा 6. तद्देवीभ्यः स्वाहा 7. ॐ किन्नरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा 8. तद्देवीभ्यः स्वाहा ।
षष्ठम वलय- पुनः एक मण्डलाकार परिधि बनायें। उसके बाहर पूर्वादि चारों दिशाओं के मध्य में दो-दो तथा ऊपर एवं नीचे में एक-एक कुल दस गृह की रचनाकर उनमें क्रम से दस दिक्पालों के नाम लिखें- 1. ॐ नमः इन्द्राय स्वाहा 2. ॐ नमः अग्नये स्वाहा 3. ॐ नमः यमाय स्वाहा 4. ॐ नमः नैर्ऋतये स्वाहा 5. ॐ नमः वरुणाय स्वाहा 6. ॐ नमः कुबेराय स्वाहा 8. ॐ नमः ईशानाय स्वाहा 9. नागेभ्यः स्वाहा 10. ऊपर के भाग में ॐ नमः ब्रह्मणे स्वाहा।
नमः वायवे स्वाहा 7. ॐ
नीचे के भाग में ॐ नमः
वर्तमान प्रतियों के अनुसार छह वलय के पश्चात मण्डलाकार तीन प्रकार के तीन वलय बनायें। इसके चारों दिशाओं में द्वार बनाकर उसके ऊपर तोरण और ध्वजा का आलेखन करें। फिर प्रथम प्राकार के पूर्वादि द्वारों के भीतर दोनों तरफ 1. वैमानिक 2. व्यन्तर 3. ज्योतिष और 4. वैमानिक देव और देवियाँ - इन दो-दो युगलों का अनुक्रम से पीत, श्वेत, रक्त और कृष्ण वर्ण में आलेखन करें। द्वार के मध्य में यष्टिधारी तुंबरू का आलेखन करें। दूसरे प्राकार में पूर्वादि द्वारपालों के रूप में 1. जया 2. विजया 3. अजिता और 4. अपराजिता तथा तीसरे प्राकार में पूर्वादि द्वारपालों के रूप में चार तुंबरू का आलेखन करें। यहाँ दूसरे प्राकार में तिर्यञ्च जीव और तीसरे प्राकार में यान-वाहन का
आलेखन भी करें।