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374... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
कुंकुम एवं हल्दी पानी का छिटकाव- सोलह पात्र की विधि पूर्ण होने के पश्चात एक सौभाग्यवती नारी जो 16 श्रृंगारों से सजी हुई एवं केश राशि खुली रखी गई हो उसे जिनमंदिर में बुलाएं। उसके दोनों हाथों से बाजोठ के चारों ओर कुंकुम-हल्दी के पानी का छिटकाव करवाएं। तीन बार फूल बिखराएं। फिर वह जिनमंदिर से बाहर आ जाएं।
पात्र विसर्जन- प्रत्येक दीपक बुझ जाये तब सोलह पात्र एवं छत पर रखे गये चार संध्या पात्र, ऐसे कुल 20 पात्रों को एक पेटी में बंद करें तथा कुंकुमहल्दी का पानी एवं विकीर्ण पुष्पों को भी एकत्रित करके पेटी में डाल दें। उस पेटी को दो व्यक्ति नगर के बाहर निर्जन स्थान पर रख आये। लौटते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें, मौन पूर्वक कार्य करें और साथ में एक हथियार रखें।
चार वेदिका- जिन मंदिर की चारों दिशाओं में मिट्टी की चार वेदिका स्थापित करें। वेदिका को मीढल युक्त मौली से बांधे। उसके ऊपर कुंकुम का साथिया, उसके ऊपर अक्षत का साथिया, उसके ऊपर सुपारी, सप्त धान्य के बाकुले एवं जवारा का एक सकोरा 'ॐ ह्रीं क्ष्वी सर्वोपद्रवान् बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा'- यह मन्त्र बोलकर रखें।
फिर 21 तार वाले सूत के धागे को गुरु महाराज के द्वारा नवकार, उवसग्गहरं एवं लोगस्ससूत्र से सात बार अभिमन्त्रित करवाएं तथा 'ॐ ही क्ष्वीं सर्वोपद्रवान् बिम्बस्य रक्ष-रक्ष स्वाहा'- इस मन्त्र से 21 बार वासचूर्ण डलवाएं। तदनन्तर इस धागे को जिनमन्दिर के दाहिने खंभे पर प्रदक्षिणा क्रम से बंधवायें।
गादी पूजन- जिस गादी पर जिनबिम्ब को प्रतिष्ठित करना हो उस गादी के नीचे अक्षत, जौ, सरसों, पंचरत्न की पोटली, डाभ, आठ जाति की मिट्टी, चाँदी का रूपया और चांदी का कच्छप रखें।
क्रियाकारक चांदी के प्रत्येक कच्छप (कूर्म) को प्रक्षालित कर उन पर यक्ष कर्दम के द्वारा अनामिका अंगुली से निम्न मंत्र लिखें- 'ॐ कूर्म निज पृष्ठे जिनबिम्बं धारय-धारय स्वाहा।'
- इसी मन्त्र का स्मरण करते हुए गुरु भगवन्त प्रत्येक कूर्म पर वासचूर्ण डालें। कच्छप का मुख द्वार की तरफ रखें।
दृष्टि मेल- प्रभु दृष्टि का मिलान रात्रि में ही कर दें। तदनुसार भगवान विराजमान करने की जगह को पहले से ही टांकणी द्वारा निश्चित कर लें।