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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप
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जिन मन्दिर के गर्भगृह के चारों कोनों में मिट्टी के चार घड़े रखें। वहाँ चारों जगह 'तिजयपहुत्त स्तोत्र' का पाठ करें। फिर पूर्वाभिमुख और उत्तराभिमुख चैत्यवंदन करें।
मध्य रात्रि जाप - मध्य रात्रि में शिखर के ऊपर दो व्यक्ति धूप-दीप पूर्वक 48 मिनट तक 'सभी क्षेत्रदेवता मुझे अनुकूल हो' यह जाप करें। उस समय जिनमंदिर के रंगमंडप में दशांगधूप पूर्वक उवसग्गहरं स्तोत्र का 108 बार जाप करें। प्रतिष्ठा के दो दिन पहले से ही 12 दिनों तक गाँव के प्रत्येक घर में से कोई भी एक व्यक्ति निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें।
ॐ
नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारी
परिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलोक्य महिताय श्री....
नमः ।
शिखर की विधि - मूलनायक भगवान के ध्वजदंड का अभिषेक आदि होने के पश्चात गाजते - बाजते जिनमंदिर अथवा सिंहासन की तीन प्रदक्षिणा करें। उसके बाद ध्वजदंड और कलश को शिखर पर चढ़ायें।
क्रियाकारक रजतमय वास्तु पुरुष का प्रक्षाल कर केसर-बरास आदि से उसका विलेपन करें, यक्षकर्दम से कपाल पर तिलक करें, पुष्प चढ़ायें, गुरु भगवन्त से वासचूर्ण डलवाएं। फिर वास्तु मूर्ति को ऊपर ले जायें।
शिखर पर कलश के नीचे तांबे का लोटा, उसमें घी, मिश्री एवं पंचरत्न की पोटली रखें। उसके ढक्कन को सील बंध करें। फिर शिखर पर स्वर्ण जल एवं केसर के छांटने करने के बाद उस लोटे को स्थापित करें |
उस लोटे के ऊपर चाँदी का पलंग रखें। उस पर रेशमी गद्दी - तकिया बिछाएँ। उस गद्दी पर वास्तु मूर्ति को सन्मुख पैर रहे और पीछे मस्तक रहे इस विधि से स्थापित करें। उस वास्तु पुरुष की मूर्ति को सात धान्यों से बधाएं । ध्वजदंड के नीचे पंचरत्न की पोटली रखें। आमलसार पर पंचरंगी सूत के धागे में मींढल - मरडाशिंग बाँधकर तीन आंटे लगाएं।
शिखर पर निम्न श्लोक पढ़कर पुष्पांजलि करें।
कुलधर्मजातिलक्ष्मी, जिनगुरु भक्तिपरोन्नति देवी । प्रासादे पुष्पाञ्जलिं रचयास्मत्कररत्नो भूयात् ।। ध्वजदंड एवं कलश प्रतिष्ठा - जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के समय कलश के निकट के खामणामां और ध्वजदंड पर सीमेन्ट लगाएँ। दंड के ऊपर ध्वजा बांधी हो तो उसे खोलकर ध्वजा फहराएं।