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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...371 तत्पश्चात सौभाग्य मुद्रा से जिनबिम्ब पर निम्न मंत्र का न्यास करें
ॐ अवतर अवतर सोमे-सोमे कुरु-कुरु वग्गु-वग्गु निवग्गु-निवग्गु सोमे सोमणसे महुमहुरे कविल ॐ कः क्षः स्वाहा।
फिर परमेष्ठी मंत्र बोलकर मंगल गीत, नृत्य एवं वाद्य-ध्वनियों के बीच मदनफल-अरिष्ट आदि से युक्त कंकण को बिम्ब से उतारकर सधवा स्त्रियों के हाथ में दें।
फिर जिनबिम्ब पर वासचूर्ण डालकर अंजलि मुद्रा बनायें और निम्न मंत्र बोलकर प्रतिष्ठा देवता का विसर्जन करें
__'ॐ विसर विसर प्रतिष्ठा देवते स्वाहा।'
आचार्य वर्धमानसूरि के अनुसार जब तक कंकण-मोचन नहीं होता है तब तक प्रतिदिन बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्र करें। कंकण मोचन हो जाने पर नित्य लघुस्नात्रविधि से स्नात्र करें। एक वर्ष पूर्ण हो जाने पर बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्र करें तथा उसके बाद नित्य पूजा करें।
कुछ प्रतिष्ठाकारों के मतानुसार नूतन जिनबिम्बों का एक वर्ष तक निरन्तर स्नात्र करें। फिर वर्षगांठ के अवसर पर अष्टाह्निका महोत्सव अथवा विशेष पूजा करके आयुर्घन्थि (कंकण डोरा) खोलें तथा प्रत्येक वर्षगांठ पर यथाशक्ति उत्तरोत्तर पूजा करें।
नंद्यावर्त विसर्जन- पूर्व क्रमानुसार सभी वलय के देवताओं की पूजा करें। फिर बाहर के वलय में स्थित देवताओं के प्रति
___ यान्तु देवगणाः सर्वे, पूजामादाय मामकीम् ।
सिद्धिं दत्त्वा च महतीं, पुनरागमनाय च ।। यह कहकर निम्न मंत्र पूर्वक नवग्रह एवं क्षेत्रपाल का विसर्जन करें
ॐ ग्रहाः सक्षेत्रपालाः पुनरागमनाय स्वाहा। तत्पश्चात उसके मध्य वलय में स्थित देवताओं की पूजा करें। फिर बाहर के वलय में स्थित देवताओं के प्रति ‘यान्तु देवगणा: सर्वे' श्लोक कहकर एवं निम्न मंत्र पूर्वक क्रमशः दिक्पाल, इन्द्राणी - इन्द्र, लोकान्तिक देव, विद्यादेवी, जिनमाता, पंच परमेष्ठी एवं रत्नत्रय, वाग्देवता, ईशानेन्द्र और सौधर्मेन्द्र का विसर्जन करें