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370... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन करवाने वालों को स्वर्ण की मेखला या कड़ा प्रदान करें। औषधियों का पिष्ट पेषण करने वाली स्त्रियों एवं अंजन पीसने वाली कन्याओं को वस्त्राभूषण एवं मातृशाटिका प्रदान करें। तदनन्तर देश, काल आदि की अपेक्षा से तीन, पाँच, सात नौ दिन तक प्रतिष्ठा देवता की स्थापना एवं नंद्यावर्त्त पट्ट की रक्षा करें।
दूसरे दिन नूतन जिनालय का द्वारोद्घाटन करें।20 प्रतिष्ठा के परवर्ती चरण
प्रतिष्ठा सम्पन्न होने के बाद भी कुछ अनुष्ठान शेष रह जाते हैं वे निम्नोक्त हैं
कंकण मोचन- उत्कृष्ट से कंकण मोचन एक वर्ष के पश्चात, मध्यम से छह माह के पश्चात तथा जघन्य से एक मास, एक पक्ष, दस दिन, सात दिन या तीन दिन में किया जाता है।
प्रतिष्ठा उत्सव पूर्ण होने पर तीसरा, पांचवाँ या सातवाँ जो भी श्रेष्ठ दिन हो उस दिन नूतन बिम्ब की शान्ति स्नात्र पूजा करें, प्रचुर मात्रा में नैवेद्यादि चढ़ायें, फिर चारों दिशाओं में भूतबलि का क्षेपण करें।
उसके पश्चात चार स्तुतियों से चैत्यवंदन करें। फिर प्रतिमा के हाथों में बांधे गए मंगल सूत्र को खोलने के लिए अन्नत्थसूत्र कहकर एक नवकार मन्त्र अथवा एक लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। फिर प्रकट में पुन: नवकार मन्त्र अथवा लोगस्ससूत्र बोलें।
प्रतिष्ठा देवता विसर्जन- प्रतिष्ठा देवता का विसर्जन करने के लिए अन्नत्थसूत्र कहकर एक लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। फिर पूर्णकर प्रकट में पुनः लोगस्ससूत्र पढ़ें।
प्रतिष्ठा देवता विसर्जन- प्रतिष्ठा देवता का विसर्जन करने के लिए अनत्थसूत्र कहकर एक लोगस्स सूत्र का चिंतन करें। फिर पूर्णकर प्रकट में पुनः लोगस्ससूत्र पढ़ें। तत्पश्चात श्रुत देवता, शांति देवता, क्षेत्रदेवता, भवन देवता, शासन देवता एवं समस्त वैयावृत्यकर देवों की आराधनार्थ पूर्व की भाँति कायोत्सर्ग करें और उनकी स्तुति बोलें। विशेष यह है कि शान्ति देवता के कायोत्सर्ग के अनन्तर निम्न स्तुति कहें
उन्मृष्टरिष्टदुष्ट ग्रहगति, दुःस्वप्न दुनिमित्तादि । संपादितहितसम्पन्नाम, ग्रहणं जयति शान्तेः ।।