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338... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन मन्त्र का न्यास करें।
न्यास मन्त्र- ॐ इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमयेनेहानुग्रहाय भव्यानां भः स्वाहा अथवा हुँ क्षां ही क्ष्वी औं भः स्वाहा।
तदनन्तर स्नात्रकार श्रावक दृष्टि दोष के निवारणार्थ लोह से अस्पृष्ट सफेद सरसों की पोटली को निम्न मंत्र से 7 बार अभिमन्त्रित कर जिनबिम्बों के दाएँ हाथ में बाँधे।
रक्षापोटली मन्त्र- ॐ झाँ झझी इवीं स्वाहा।
सभी बिम्बों के हाथ में पोटली बाँधकर उनके मस्तक पर चंदन का तिलक करें।
तत्पश्चात प्रतिष्ठाचार्य अथवा उपस्थित गुरु भगवन्त परमात्मा के सम्मुख हाथ जोड़कर इस प्रकार विज्ञप्ति करें
स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु, प्रसाद धियां । कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ।।
तत्पश्चात स्नात्रकार श्रावक सरसों, दहि, घृत, अक्षत, डाभ- इन पाँच द्रव्यात्मक अर्घ को स्वर्ण पात्र में रखकर एवं उसे हाथ में लेकर खड़े रहें। उस समय विधिकारक निम्न मंत्र कहकर अर्घ पात्र को जिन बिम्बों के आगे रखवायें।
अर्घ निवेदन मन्त्र- ॐ भः अर्घ प्रतीच्छन्तु पूजां गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा।
उसके बाद पुन: श्रावक सरसव आदि पाँच द्रव्यों के अर्घ का दूसरा पात्र हाथ में लें और प्रतिष्ठाचार्य वासचूर्ण ग्रहण करें। फिर निम्न मन्त्रों के द्वारा दिक्पालों का आह्वान कर उन्हें अर्घ प्रदान करें
दिक्पाल आह्वान और अर्घनिवेदन मन्त्र- पूर्व दिशा- ॐ इन्द्राय आगच्छ-आगच्छ, अर्घ प्रतीच्छ-प्रतीच्छ, पूजां गृहाण-गृहाण स्वाहा।
इसी तरह शेष नौ दिशा-विदिशाओं के स्वामी अग्नि, यम, नैऋत्य, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, नाग और ब्रह्मा- इन देवों का नाम उच्चरित करते हुए पूर्व मन्त्रवत सभी को क्रम से आमन्त्रित करें और उस-उस दिशा की ओर अभिमुख होकर अर्घ प्रदान करें। ____11. एकादश-कुसुम स्नात्र- ग्यारहवाँ अभिषेक करने हेतु सेवंती, चमेली, मालती, मोगरा, गुलाब आदि सुगन्धित पुष्पों से युक्त जल को कलशों में भरें।