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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...339 तदनन्तर स्नात्रकार जिनबिम्ब के निकट खड़े रहें और गुरु भगवन्त या विधिकारक ‘नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें।
अधिवासितं सुमंत्रैः, सुमनः किंजल्कराजितं तोयम् ।
तीर्थजलादि सुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ।। मन्त्र- ॐ हाँ ही परम-अर्हते सुगंध-पुष्पोषैः स्नापयामीति स्वाहा।
फिर स्नात्रकार पुष्प युक्त जल से जिनबिम्बों का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप से पूजा करें।
12. द्वादश-गन्ध स्नात्र- बारहवाँ स्नात्र करते समय केसर, कपूर, कस्तूरी, अगर, चंदन, सिंहलक, कुष्ट, सुरमांसि आदि सुगन्धित वस्तुओं के चूर्ण को पानी में मिलाकर उन्हें पृथक्-पृथक् कलशों में भरें।
तदनन्तर स्नात्रकार उन कलशों को लेकर प्रतिमा के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें।
गन्यांग स्नानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः ।
स्नपयामि जैन बिम्बं, कौघोच्छित्तये शिवदम् ।। मन्त्र- ॐ ह्रां ह्रीं परम-अर्हते गन्धेन स्नापयामीति स्वाहा।
फिर सुगन्धित जल से जिन बिम्बों का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें। ___13. त्रयोदश-वास स्नात्र- तेरहवाँ स्नात्र करते समय चंदन, केसर और कपूर के घोल को जल में मिश्रित कर उसे कलशों में भरें।
फिर स्नात्र करने वाले उन कलशों को लेकर बिम्ब के समीप खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें।
हृद्यैराहादकरैः स्पृहणीय, मंत्र संस्कृत जैनम् ।
स्नपयामि सुगतिहेतो, बिम्बं अधिवासितं वासैः ।। मन्त्र- ॐ हा ही परम- अर्हते सुगन्ध वास चूर्णैः स्नापयामीति स्वाहा।
फिर वास जल से प्रतिमाओं का अभिषेक करें। पुन: पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप से पूजा करें।