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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...337 नैऋत्य कोण- ॐ नैऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। पश्चिम दिशा- ॐ वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। वायव्य कोण- ॐ वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। उत्तर दिशा- ॐ कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। ईशान कोण- ॐ ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। अधो दिशा- ॐ नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। उर्ध्व दिशा- ॐ ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। 10. दशम-सौषधि स्नात्र- दसवाँ अभिषेक करने हेतु हरिद्रा, वचा, सौंफ, वालक, मोथ,ग्रन्थिपर्णक, प्रियंगु, मोरमांसी, कचूंरक, कुष्ट, इलायची, तज, तमालपत्र, नागकेसर, लवंग, कंकोल, जातीफल, जातिपत्रिका, नख, चन्दन, सिल्हक आदि- इन सर्वोषधि चूर्ण से मिश्रित जल को कलशों में भरें।
तत्पश्चात स्नात्रकार इन कलशों को हाथों में लेकर प्रतिमा के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें।
सकलौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः ।
स्नपयामि जैन बिम्बं, मंत्रिततन्नीर निवहेन ।। __ मन्त्र- ॐ हाँ हाँ परम-अर्हते प्रियंग्वादि-सौषधिभिः स्नापयामीति स्वाहा।
तदनन्तर सर्वौषधि चूर्ण के मिश्रित जल से जिन बिम्बों का अभिषेक करें। फिर तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें। मंत्रन्यास आदि अवान्तर विधि ____ दसवाँ अभिषेक होने के पश्चात प्रतिष्ठाचार्य दृष्टि दोष के निवारणार्थ प्रतिष्ठाप्य जिनबिम्ब के ऊपर स्वयं का दाहिना हाथ रखकर 'सिद्धा जिनादि'