SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 334... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन तटों की मिट्टी - इन आठ प्रकार की मिट्टियों को जल में सम्मिश्रित कर उसके चार कलश भरें। फिर स्नात्रकार हाथों में कलश लेकर बिम्ब के निकट खड़े रहें और विधिकारक निम्न श्लोक एवं मन्त्र बोलकर 27 डंका बजायेंपर्वतसरोनदी संगमादि, मृभिश्च मन्त्रपूताभिः । उद्वर्त्य जैन बिम्बं स्नपयाम्यधिवासना समये ।। मन्त्र- ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम- अर्हते नदी- नग तीर्थादि- मूच्चूर्णैः स्नापयामीति स्वाहा । फिर स्नात्रकार बिम्बों का अभिषेक करें तथा पूर्ववत पुष्पादि अर्पण करें। 5 पंचम - पंचामृत स्नात्र- पांचवाँ अभिषेक करने हेतु दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर तथा एक प्रकार का पवित्र घास (दर्भ) - इन छह वस्तुओं को जल में संयुक्त कर उनसे चार कलश भरें। फिर स्नात्रकार उन कलशों को हाथ में लेकर प्रतिमा के समीप खड़े रहें तथा गुरु महाराज अथवा विधिकारक निम्न श्लोक और मंत्र पढ़कर 27 डंका बजवायें। दधिदुग्धघृतछगणप्रस्रवणैः, पंचभिर्गवांग भवैः । दर्भेदिक संमिश्रैः, स्नपयामि जिनेश्वर प्रतिमाम् ।। मन्त्र - ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम अर्हते पंचामृतेन स्नापयामीति स्वाहा तदनन्तर पंचामृत पूरित कलशों से जिन बिम्ब का अभिषेक करें। फिर पूर्ववत तिलक आदि से पूजा करें। 6. षष्ठम - सदौषधि स्नात्र- छठवाँ स्नात्र करने हेतु सहदेवी, बला, शतमूली, शतावरी, कुमारी, गुहा, सिंही और व्याघ्री - इन अष्टविध सदौषधियों के चूर्ण से मिश्रित जल को चार कलशों में भरें। फिर स्नात्रकार कलशों को लेकर प्रतिमा के निकट उपस्थित रहें तथा गुरु महाराज या विधिकारक निम्न श्लोक एवं मंत्र पढ़कर 27 डंका बजवायें। सहदेव्यादिसदौषधि, वर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य । संमिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ।। मन्त्र - ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम- अर्हते सहदेव्यादि - सदोषधिभिः स्नापयामीति स्वाहा। तदनन्तर सदौषधि चूर्ण मिश्रित जल से प्रभु का अभिषेक करें। फिर पूर्ववत
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy