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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...335 जिनबिम्बों की तिलक आदि से पूजा करें। ___7. सप्तम-मूलिकावर्ग स्नात्र- सातवाँ स्नात्र करने हेतु मयूरशिरवा विरहक, अंकोल, लक्ष्मणा, शंखपुष्पी, शरपंखा, विष्णक्रान्ता, चक्रांका, साक्षी, महानीली आदि मूलिका नाम की औषधियों के चूर्ण को पानी में मिलाकर उन्हें चार कलशों में भरें।
फिर स्नात्रकार कलश लेकर प्रतिमा के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़ें और 27 डंका बजवायें।
सुपवित्रमूलिकावर्ग, मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा ।
बिम्बेऽधिवास समये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ।। मन्त्र- ॐ ह्रां ही परम-अर्हते मयूरशिखादि मूलिकावर्गोषधिभिः स्नापयामीति स्वाहा।
फिर स्नात्रकार जिन बिम्बों का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें।
8. अष्टम-प्रथम अष्टकवर्ग स्नात्र- आठवाँ स्नात्र करते समय कुष्ट, प्रियंगु, वचा, रोध्र, उशीर, देवदारू, दूर्वा, मधुयष्टिका और ऋद्धि-वृद्धि- इन आठ औषधियों के चूर्ण को पानी में संयुक्त कर उन्हें कलशों में भरें।
फिर स्नात्रकार कलशों को लेकर जिनबिम्ब के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक निम्न श्लोक एवं मन्त्र का उच्चारण करें, फिर 27 डंका बजवायें।
नानाकुष्टाद्यौषधि संमिश्रे, तद्युतं पतन्नीरम् ।
बिम्बे कृतसन्मन्त्रं, कर्मोघं हन्तु भव्यानाम् ।। मन्त्र- ॐ ह्रां ह्रीं परम-अर्हते कुष्टापष्टकवर्गेण स्नापयामीति स्वाहा
तदनन्तर स्नात्रकार सर्व बिम्बों का अभिषेक करें। फिर पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें।
9. नवम-द्वितीय अष्टकवर्ग स्नात्र- नौवाँ अभिषेक करते समय मेद, महामेद, कंकोल, क्षीर कंकोल, जीवक, ऋषभक, नखी, महानखी- इन अष्टविध औषधियों के चूर्ण को पानी में मिलाकर उन्हें चार कलशों में भरें।
उसके पश्चात स्नात्र करने वाले पुरुष हाथों में कलश लेकर जिनबिम्ब के समीप खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र का उच्चारण कर 27 डंका बजवायें।