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________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...333 ॐ हाँ ह्रीं परम-अर्हते गंध-पुष्पाक्षत-धूप संपूर्णैः सुवर्णेन स्नापयामीति स्वाहा। फिर 27 डंका बजाकर बिम्ब का अभिषेक करें। उसके बाद पूर्व कथित विधि-नियम के अनुसार जिन बिम्बों पर चंदन का तिलक लगायें, पुष्प चढ़ायें एवं धूप प्रज्वलित करें। 2. द्वितीय-पंचरत्न जल स्नात्र- दूसरा अभिषेक करने के लिए मोती, सोना, चाँदी, प्रवाल और तांबा- इन पंच रत्नों के चूर्ण से मिश्रित जल को चार कलशों में भरकर, प्रतिमा के समीप खड़े रहें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक बोलें नानारत्नौघ युतं, सुगंधि पुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद् विचित्र वर्ण, मंत्राढ्यं स्थापना बिम्बे ।। फिर निम्न मंत्र कहें ॐ ह्रां ह्रीं परम-अर्हते मुक्ता-सुवर्ण-रौप्य-प्रवाल-त्र्यम्बकादि पंचरत्नैः स्नापयामीति स्वाहा। फिर 27 डंका बजाकर बिम्ब का अभिषेक करें। उसके पश्चात पूर्ववत तिलक, पुष्प और धूप पूजा करें। 3. तृतीय-कषायजल स्नात्र- तीसरा अभिषेक करने हेतु पीपल, वटवृक्ष, सिरस, गुलर, चंपक, अशोक, आम्र, उदुम्बर जाति के वृक्षों की छाल आदि कषाय चूर्ण को जल में मिश्रित कर चार कलश भरें। फिर स्नात्रकार जिन प्रतिमा के निकट खड़े हो जायें और विधिकारक निम्न श्लोक एवं मंत्र पढ़कर 27 डंका बजायें। प्लक्षाश्वत्थोदुम्बर शिरीषवल्कादिकल्क संसृष्टम् । बिम्बे कषाय नीरं, पततादधिवासितं जैने ।। मंत्र- ॐ हाँ ही परम-अर्हते पिप्पल्यादि-महाछल्लैः स्नापयामीति स्वाहा। फिर स्नात्रकार बिम्ब का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक आदि से पूजा करें। 4. चतुर्थ-मंगलमृत्तिका स्नात्र- चौथा अभिषेक करने के लिए हाथी के दाँत से उद्धृत की गई मिट्टी, वृषभ के सींग से खोदी गई मिट्टी, पर्वत की मिट्टी, दीमक, पद्मसरोवर, नदियों के संगम स्थल, तीर्थ स्थल एवं नदी के दोनों
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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