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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 327
• इस प्रकार मण्डप और वेदिका तैयार हो जाये, उसके अनन्तर मण्डप भूमि को छाणा और खड़ी (सफेद) मिट्टी के गार से लिपवायें तथा लेपन करवाने से पूर्व उस गार को सुगंधित बनाने हेतु उसमें गुलाबजल और यक्षकर्दम का मिश्रण करें।
• तत्पश्चात खड़ी मिट्टी अथवा चूने के घोल में यक्षकर्दम, पंचरत्न का चूर्ण और सुवर्णरज मिश्रित कर वेदिका पुतवायें । फिर वेदिका के चारों तरफ की भींत के ऊपर कुशल चित्रकारों द्वारा मांगलिक चित्रों का आलेखन करवायें।11 ।। इति वेदिका निर्माण- पूजन विधि ।। अठारह अभिषेक विधि
(अठारह अभिषेक की यह विधि प्रतिष्ठा कल्पों में सर्वप्रथम सुबोधा सामाचारी एवं विधिमार्गप्रपा में उल्लिखित है।) तदनन्तर यह विधि आचार दिनकर, कल्याण कलिका, सकलचन्द्र प्रतिष्ठा पद्धति आदि ग्रन्थों में प्राप्त होती है। सुबोधा सामाचारी एवं विधिमार्गप्रपा में इस विधि का स्वरूप प्राय: समान है तथा अन्य प्रतिष्ठा कल्पों की अपेक्षा उक्त दोनों ग्रन्थ प्राचीन भी है। वर्तमान में यह विधि इन्हीं ग्रन्थों के अनुसार प्रचलित भी है इसलिए अठारह अभिषेक की विधि तदनुसार कही जा रही है
स्नात्रकारों की उपस्थिति एवं औषधि चूर्ण का पिष्टन - सर्वप्रथम पूर्व में बताये गये गुणों से युक्त चार पुरुषों को स्नात्रकार के रूप में उपस्थित करें। यदि नवीन बिम्बों का अभिषेक करना हो तो स्नात्रकार प्रतिष्ठा मंडप में, अन्यथा जिनालय के रंग मंडप में उपस्थित होवें ।
तत्पश्चात पूर्व गुणों से युक्त चार अथवा आठ सुहागिन नारियों के द्वारा शुद्ध विधि से पंचरत्न, कषाय मृत्तिका, मांगल्य मूलिका, अष्टक वर्ग आदि सर्व औषधियों को अनुक्रम से पिसवायें।
फिर इन औषधि चूर्णों को पृथक्-पृथक् सकोरों में डालकर उनके ऊपर दूसरे सकोरे रखें। उसके बाद उन्हें मौली से लपेट कर एवं उन पर नाम लिखकर रख दें। भूतबलि अभिमन्त्रण एवं प्रक्षेपण - तदनन्तर भूतबलि (बाकुले एवं पू आदि सामग्री) को निम्न मंत्र से अभिमन्त्रित करें। फिर चतुर्विध संघ की उपस्थिति में उसे दसों दिशाओं में उछालें