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316... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
6. वर्धमान संपुट
पुण्यं यशः समुदयः प्रभुता महत्त्वं सौभाग्य धी विनय शर्म मनोरथाश्च । वर्धन्त एव जिननायक! ते प्रसादात्
तद्वर्धमान युग संपुटमादधामः ।।6।। 7. मत्स्य युग्म
त्वद्वध्य पञ्चशरकेतन भावक्लप्तं, कर्तुं मुधा भुवननाथ! निजापराधम् । सेवां तनोति पुरस्तस्तव मीन युग्मं,
श्राद्धैःपुरो विलिखितं निरूजाङ्ग युक्तया ।।7।। 8. दर्पण
आत्मालोक विधौ जिनोऽपि सकल-स्तीनं तपो दुश्चरं, दानं ब्रह्म परोपकार करणं, कुर्वन् परिस्फुर्जति । सोऽयं यत्र सुखेन राजति स वै, तीर्थाधिपस्याग्रतो,
निर्मेयः परमार्थवृत्तिविदुरैः, संज्ञानिभिर्दर्पणः ।।8।। अष्ट मंगल का पूजन
फिर निम्न मंत्रों से अष्ट मंगल की सर्वोपचारी पूजा करें। 1. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा -चंदन से पूजा करें। 2. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा -गुलाब के पुष्प चढ़ायें। 3. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा -श्वेत रेशमी वस्त्र चढ़ायें। 4. फलं समर्पयामि स्वाहा -बादाम चढ़ायें। 5. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा -धूप दिखायें। 6. दीपं दर्शयामि स्वाहा -दीपक रखें। 7. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा -पतासा चढ़ायें 8. अक्षतं ताम्बूलं द्रव्यं फलं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा -नागवेल
का पान, सुपारी, लोंग, इलायची आदि चढ़ायें। तत्पश्चात निम्न श्लोक बोलते हुए विविध सामग्री चढ़ायें
नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणिंद पडिमाओ। दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा, समवसरणत्था ।।1।।