SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...315 अगर, केसर, बरास, चंदन और कपूर मिश्रित चूर्ण द्वारा अष्टमंगल का आलेखन करें। फिर निम्न श्लोक बोलते हुए अष्ट मंगल के पट्ट को कुसुमांजली से बधायें आदर्शोदितकेवलर्द्धिरसमै, श्वर्यं च भद्रासनाद् ब्रह्माण्डस्थ शरावसम्पुटतनो-र्यः कामकुम्भः पुरः ।। श्री वत्साङ्गमिव स्फुटश्च तनुते, नित्योत्सवः स्वस्तिकानन्द्यावर्त वहगुताकृतिकृता-नन्दः स वोऽव्याज्जिनः ।। मङ्गल श्रीमदर्हन्तो, मंगलं जिन शासनम् । मंगलं सकलः संघो, मंगलं पूजका अमी।। निम्न श्लोक पढ़ते हुए स्वस्तिक आदि आठ मंगलों को कुसुमांजलि चढ़ाएँ1. स्वस्तिक स्वस्ति भूगगननागविष्टपे-घूदितं जिनवरोदयेक्षणात् । स्वस्तिकं तदनुमानतो जिन-स्थाग्रतो बुधजनैर्विलिख्यते ।।1।। 2. श्रीवत्स अन्तः परम ज्ञानं, यद् भाति जिनाधिनाथ हृदयस्य । तच्छ्रीवत्सव्याजात्, प्रकटी भूतं बहिर्वन्दे ।।2।। 3. पूर्णकलश विश्वत्रये च स्वकुले जिनेशो, व्याख्यायते श्री कलशायमानः । अतोऽत्र पूर्ण कलशं लिखित्वा, जिनार्चनाकर्म कृतार्थ यामः ।।३।। 4. भद्रासन जिनेन्द्र पादैः परिपूज्य पुष्टै-रतिप्रभावैरतिसन्निकृष्टम् । भद्रासनं भद्रकरं जिनेन्द्र, पुरो लिखेन्मङ्गल सत्प्रयोगम् ।।4।। 5. नन्द्यावर्त त्वत्सेवकानां जिननाथ! दिक्ष, सर्वासु सर्वे निधयः स्फुरन्ति । अतश्चतुर्धा नवकोणनन्द्या-वर्त्तः सतां वर्तयतां सुखानि ।।5।।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy