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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 317
दर्पण भद्रासनवर्धमान, घटमत्स्ययुग्मैश्च । नन्द्यावर्तश्रीवत्स, विस्फुट स्वस्तिकैर्जिनार्चास्तु ।।2।। एक श्रीफल, पाँच फल, पाँच नैवेद्य, एक घेवर, नागरवेल के पत्ते के ऊपर सुपारी, अक्षत, पतासा, लोंग, इलायची, बादाम, मिश्री का टुकड़ा, खारेक, पंच रत्न की पोटली, सवा रूपया, श्वेत रेशमी वस्त्र, मदनफल युक्त मौली, चाँदीसोने का बरक, पानी का कलश, केसर की कटोरी,
पुष्पमाला आदि।
• अष्टमंगल पट्ट की स्थापना निम्न विधि से करेंसर्वप्रथम पट्ट के चारों कोनों में थोड़ा जल डालें। फिर अष्टमंगल पट्ट पर पूर्व में चढ़ाए गए फल, नैवेद्य आदि उठा लें। फिर उस पट्ट पर श्रीफल, घेवर एवं नागरवेल का पान आदि चढ़ायें। तत्पश्चात रेशमी वस्त्र से आच्छादित कर मदनफल युक्त मौली से पट्ट को बांधें । शुद्ध जल से छींटे दें। उसके ऊपर चांदी - सोने का बरख चढ़ायें। तत्पश्चात केसर के छींटें डालें तथा पुष्पमाला एवं पुष्प चढ़ायें। फिर परमात्मा के सम्मुख अथवा दश दिकपाल एवं नवग्रह पट्ट के मध्य में अष्टमंगल पट्ट को रखें।
तदनन्तर गुरु भगवन्त के द्वारा अष्टमंगल पट्ट पर निम्न मंत्र बोलते हुए वासचूर्ण डलवाएँ
ॐ अर्हं स्वस्तिक - श्रीवत्स - कुम्भ- भद्रासन - नन्द्यावर्त्त - वर्धमान मत्स्य युग्म-दर्पणान्यत्र जिन बिम्बाञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा महोत्सवे... शान्ति स्नात्र बृहत्स्नात्र महोत्सवे सुस्थापितानि, सुप्रतिष्ठानि, अधिवासितानि लं लं लं ह्रीं
नमः स्वाहा ।
• भगवान की अष्ट प्रकारी पूजा करके आरती एवं मंगल दीपक करें। • फिर निम्न श्लोक पढ़ते-सुनते हुए अविधि - आशातना के लिए मिथ्या दुष्कृत दें।
ॐ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मन्त्रहीनं च यत् कृतम् । तत् सर्वं कृपया देवी, क्षमस्व परमेश्वर ! ॐ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजाविधिं न जानामि, प्रसीद परमेश्वर!
फिर अन्त में अक्षत से बधाएँ।
।। इति पाटला पूजन विधि ।।