SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 280... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ऊपर-नीचे दो-दो शिलाएँ रखना शिला संप्ट कहलाता है। • लग्न समय में शिला संपुटों को स्नात्र जल से प्रक्षालित करें, फिर कलशों के शुद्ध जल से उनका अभिषेक करें, फिर केसर-चंदन से उनका विलेपन करें, फिर शिला संप्टों को खनन की जगह पर ले जायें। यदि संपुट अधिक भारी हों तथा मुहूर्त के समय व्यवस्थित स्थिर करते हुए लग्न काल बीत जाने का भय हो तो नीचे डाभ की 1-1 शली रखकर संपुटों को बराबर स्थिर कर दें और जब स्थापना का समय आ जाये तब डाभ की शलियाँ निकाल लें। शिला संपुट पाँच होते हैं उनके नाम इस प्रकार हैं- 1. नन्दा 2. भद्रा 3. जया 4. विजया और 5. पूर्णा। इन शिलाओं की स्थापना अनुक्रम से1. आग्नेय 2. नैर्ऋत्यी 3. वायव्य 4. ईशान- इन चार कोणों में और मध्य में करनी चाहिए। ___ मध्य में प्रतिष्ठाप्य 'पूर्णा' शिला के ऊपर नीचे मुख वाला कूर्म (कच्छप) और तीन रेखा वाली श्रेष्ठ कोडी- इन दो वस्तुओं की स्थापना करें। शिल्पज्ञों के अनुसार कूर्म सुवर्ण का बनाना चाहिए, जिससे वास्तु भूमि में शल्य दोष हो तो समाप्त हो जाये। • कूर्म की स्थापना करने से पहले पंचामृत से उसका अभिषेक करें। फिर लग्न का समय आने पर उपर्युक्त क्रमानुसार सभी शिलाओं पर वास चूर्ण डालते हए उनकी प्रतिष्ठा करें, किन्तु मध्य शिला के ऊपर कर्म स्थापित करते समय आचार्य कुंभक पूर्वक निम्न मंत्र को सात बार मन में स्मरण करके फिर उस पर वासचूर्ण डालें____ॐ हाँ श्रीं कूर्म तिष्ठ तिष्ठ देवगृहं धारय धारय स्वाहा। अथवा ॐ ह्रीं श्री कूम! अस्मिन् शिला सम्पुटे अवतर अवतर स्वाहा।। तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा।। निजपृष्ठे जिन प्रासादं धारय-धारय स्वाहा।। थाली बजवाएँ ... - देवगृह, प्रासाद, रथशाला, गृह आदि का निर्माण करते समय कूर्म स्थापना करनी चाहिए। जिस स्थान पर कूर्म प्रतिष्ठा करनी हो उस वास्तु का मन्त्रोच्चारण मध्य में करना चाहिए। • तदनन्तर दृष्टि दोष का निवारण करने के लिए आचार्य भगवन्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए 1. सौभाग्य 2. सुरभि 3. प्रवचन 4. कृतांजलि और 5. गरूड़- इन पाँच मुद्राओं का शिला सम्पुटों को दर्शन करवाएँ।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy