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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 279
फिर अम्बा देवियाए करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र, एक नवकार का कायोत्सर्ग, नमोऽर्हत् स्तुति बोलें
अम्बा बालांकिताङ्कासौ, सौख्य ख्यातिं ददातु नः । माणिक्यरत्नालंकार, चित्र सिंहासनस्थिता ।15।। फिर खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र, एक नवकार का कायोत्सर्ग, नमोऽर्हत्. स्तुति बोलें
यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी । 16|| फिर अधिवासना देवीए करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र, एक लोगस्स सूत्र का कायोत्सर्ग, नमोऽर्हत् स्तुति बोलें
पातालमन्तरिक्षं भवनं, वा या समाश्रिता नित्यम् ।
साऽत्रावतरतु जैने, कुर्मे ह्याधिवासना देवी | 17 ।।
फिर समस्त वेयावच्चगराणं सम्मदिट्ठिसमाहिगराणं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र, एक नवकार का कायोत्सर्ग, नमोऽर्हत्. स्तुति बोलें
सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्यकराः सुराः । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ।।8।।
फिर एक नवकार मन्त्र गिनकर नीचे बैठें। फिर नमुत्थुणं., जावंति., लघुशान्तिस्तव और जयवीयरायसूत्र बोलें।
• तत्पश्चात उस भूमि पर सभी जगह स्नात्र अभिषेक का जल छींटें, दश दिक्पालों का आह्वान कर बलि प्रदान करें और उसके बाद स्थापनीय शिला संपुट तैयार करें।
यदि पाषाण का प्रासाद बनवाना हो तो शिलाएँ पाषाण की करें और ईंटों का प्रासाद बनवाना हो तो शिलाएँ ईंटों की बनवाएँ।
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पहले से ही उस भूमि के चार कोणों में चार और एक मध्य में ऐसे पाँच गड्ढे शिलाओं की अपेक्षा कुछ मोटे खुदवाकर रखें। उन प्रत्येक गड्ढों के मध्य में एक-एक छोटा गड्ढा खुदवाये। उन छोटे गड्ढों में एक-एक मिट्टी का छोटा कलश (कुलडा), सात धान्य और पंच रत्न रखें। कलश के ऊपर मिट्टी का ढक्कन दें तथा उसके ऊपर लग्न समय उपस्थित होने पर शिला संपुट की स्थापना करें।