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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...253 तीर्थंकर ने जन्म लिया है। तब सिंहासन से त्वरति गति से उठकर एवं उस दिशा में सात-आठ कदम आगे बढ़कर नमुत्थुणसूत्र से प्रभु की स्तुति करते हैं। उसके पश्चात सुघोषा घंटा बजवाकर सभी देवलोकों में तीर्थंकर के जन्म की सूचना प्रसारित की जाती है। सर्वप्रथम छप्पन दिक्कुमारियाँ आकर माता एवं परमात्मा का सूतिकर्म सम्पन्न करती हैं। तदनन्तर सौधर्मेन्द्र अपनी समस्त ऋद्धि-सिद्धि एवं देव गणों के साथ परमात्मा के जन्म स्थल पर आकर तीन प्रदिक्षणा देते हैं। तदनन्तर माता को अवस्वापिनी निद्रा देकर पाँच रूपों में प्रभु को ग्रहण करते हैं और वहाँ परमात्मा का प्रतिबिम्ब स्थापित करते हैं। फिर अत्यन्त विनय एवं बहुमान व्यक्त करते हुए बाल प्रभु को मेरुशिखर पर लेकर जाते हैं। वहाँ समस्त देव-देवीगण भक्ति सभर भावों से परमात्मा का अभिषेक करते हैं। फिर देवदूष्य वस्त्र से प्रभु का अंगलूंछन कर उन्हें रत्न जड़ित बाजोट पर विराजमान करते हैं और उनकी आरती उतारते हैं। __ अभिषेक की यह क्रिया इतनी मनमोहक होती है जिसका वर्णन करना शब्दातीत है। देवी-देवताओं द्वारा यह कार्य हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न कर लिए जाने पर बाल प्रभु को पुन:माता के निकट ले आते हैं और उसके बाद नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव मनाते हैं। वर्तमान में जो स्नात्र पूजा की जाती है वह इसी स्नात्रोत्सव का अनुकरण है। साक्षात परमात्मा का कल्याणक मना सकें उतना हमारा पुण्य नहीं है, परन्तु द्रव्य क्रिया से उन्हीं उत्कृष्ट भावों का सर्जन कर अनन्त कर्मों की निर्जरा कर सकते हैं। स्नात्र पूजा में यदि वही स्नात्रोत्सव की भाव धारा बन जाए तो उत्कृष्ट पुण्य का बंध भी संभव है। ___वर्तमान में प्रतिष्ठा आदि के दौरान जन्म कल्याणक के दिन भव्य स्नात्रोत्सव ही रखा जाता है। उस समय देवताओं के अनुरूप हमारे में भी श्रद्धा भक्ति उत्पन्न करनी चाहिए। उनके भौतिक ऐश्वर्य के आगे हमारे जीवन की उपलब्धि तो तुच्छ है किन्तु जब वे भी उसे छोड़कर जन्मोत्सव में उपस्थित रहते हैं तो फिर हमारे द्वारा सांसारिक व्यस्तताओं के कारण प्रमादवश या जानबूझकर इन कार्यक्रमों की अवहेलना की जाए तो अंतराय कर्म का बंधन होता है। अत:
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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