SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 252... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन तीर्थंकरों के जन्म का ऐसा प्रभाव है कि उस समय सभी जीवों को क्षण भर के लिए मोक्ष सुख की अनुभूति होती है तथा सम्पूर्ण सृष्टि हर्ष एवं अपूर्व सुख से सराबोर हो जाती है। प्रकृति पर प्रभाव- तीर्थङ्कर प्रभु के जन्म अवसर पर प्राकृतिक वातावरण अद्वीतिय एवं अनुपम होता है। सर्वत्र शीतल एवं सुगंधित वायु मंद रूप से प्रवाहित होने लगती है। पृथ्वी धन-धान्यादि से समृद्ध हो जाती है। आकाश में देव-दुन्दुभियों का मधुर निनाद प्रकृति को और भी सुरीला बना देता है। उस समय भूलोक की छवि स्वर्ग के नन्दन वन से भी सुन्दर प्रतीत होती है। परमात्मा का शारीरिक सौन्दर्य- इस विश्व में तीर्थङ्कर सर्वोत्कृष्ट पुण्यशाली जीव होते हैं। उनके अतुल वैभव का साक्षात्कार तो तत्त्वज्ञानी पुरुषों को ही होता है परन्तु उनके दैहिक सौन्दर्य एवं शारीरिक बल का साक्षात्कार पुण्य प्रभाव से होता है। उनकी शारीरिक शक्ति भी इतनी बेजोड़ होती है कि छह खण्ड के अधिपति चक्रवर्ती भी उनकी एक अँगुली को मोड़ नहीं सकते। उनके शरीर की रचना इतनी सौन्दर्यपूर्ण होती है कि इन्द्र भी उसे देखकर तृप्त नहीं हो पाता है, अतः हजार नेत्र बनाकर देखता है। तीर्थङ्कर का शरीर जन्मत: पसीने से रहित और सुगंध युक्त होता है। वाणी पैंतीस गुणों को दर्शाती है। सम्पूर्ण शरीर में लाल रक्त के स्थान पर श्वेत दूध प्रसरित होता है। जैसे बालक के प्रति वात्सल्य होने से माता के स्तनों से दूध झरता है वैसे ही सम्पूर्ण जीव राशि के प्रति मैत्री भाव होने से तीर्थङ्कर के शरीर में दूध का बहाव होता है। सभी तीर्थङ्करों का जन्म राजघराने में और क्षत्रिय आदि उच्च कुलों में होता है। उनके शरीर पर 1008 शुभ लक्षण होते हैं। तीर्थङ्कर राज्य भी करते हैं, किन्तु सम्यकज्ञान के बल से स्वयं को जल में कमल की तरह अलिप्त रखते हैं और जड़-वैभव को काकबीट की तरह आत्मा के लिए अप्रयोजनभूत मानते हैं। जैसे भरत ने राम का प्रतिनिधि बनकर राज्य किया था, वैसे ही सांसारिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं। एक कवि ने कहा है सम्यग्दृष्टि जीव भी, करे कुटुम्ब प्रतिपाल । अन्तर से न्यारा रहे, ज्यों धाय खिलावे बाल ।। देवी-देवताओं द्वारा स्नात्र महोत्सव- तीर्थंकर पुरुषों का जन्म होने पर प्रथम देवलोक के इन्द्र सौधर्म का अचल सिंहासन कम्पयमान होता है। उस समय अवधिज्ञान के प्रयोग द्वारा यह जान लेते हैं कि अमुक नगरी में अमुक
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy