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248... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ___5. पुष्पमाला युगल- तीर्थङ्कर की माता पाँचवे स्वप्न में ऐसी पुष्पमाला देखती है जो प्रत्येक ऋतु के उत्तम पुष्पों से निर्मित होती है। यह आत्म विजय के साथ बालक के यशस्वी, कान्तिमान एवं सुरभित अंग युक्त होने की सूचक है। यह परमात्मा के गुणों की परिमल तीनों लोकों में प्रसरित होने एवं अन्य जीवों के प्रति पुष्प की भांति कोमल होने की भी सूचक है।
इस स्वप्न की बोली लेने वाले गृहस्थ परिवार को मुक्ति माला वरण करने की भावना करनी चाहिए। ऐसा परिवार सद्गुण रूपी पुष्पों से सदैव महकता रहता है और उससे निश्चित ही मोक्ष माला की प्राप्ति होती है।
6. पूर्ण चन्द्रमा- तीर्थंकर की माता छठे स्वप्न में अत्यन्त उज्जवल पूर्ण चन्द्र को देखती है जो शीतलता, ओजस्विता, उज्ज्वलता एवं पूर्णत्व का प्रतीक है। इससे परमात्मा के आभामंडल की दिव्यता एवं कीर्ति भी सूचित होती है। इस स्वप्न का आदर-बहुमान करने एवं चढ़ावा लेने से स्वभाव शांत और शीतल बनता है। इससे पारिवारिक एवं सामाजिक क्लेश भी नष्ट होते हैं। ____7. सूर्य- तीर्थङ्कर की माता सातवें स्वप्न में तिमिर (अंधकार) विनाशक सूर्य का दर्शन करती हैं जो गर्भस्थ शिशु के द्वारा मिथ्यात्व रूपी गहन अंधकार को नष्ट करने का संकेत देता है। इसी के साथ विश्व को केवलज्ञान रूपी सूर्य से प्रकाशित करने की भी सूचना देता है।
इस स्वप्न का बहुमान करने एवं चढ़ावा लेने से जीवन में सद्ज्ञान और सद्धर्म रूपी रवि का उदय होता है। इससे समाज को सही दिशा की प्राप्ति होती है तथा उसका उत्तरोत्तर विकास होता है।
8. धर्म ध्वजा- ध्वजा विजय की प्रतीक है। स्वप्न में लहराती धर्म ध्वजा देखने से जन्म लेने वाला बालक धर्म की यश कीर्ति को सम्पूर्ण जगत में प्रसरित करने वाला और जिन धर्म को सर्वोत्तम रूप में स्थापित करने वाला होता है।
इस स्वप्न का चढ़ावा आदि लेने एवं अनुमोदना करने से धर्म उन्नयन के विशिष्ट भाव प्रकट होते हैं तथा समाज में भौतिकता, अहिंसा एवं श्रेष्ठ धर्म की स्थापना करके जिनशासन लह-लहाता है।
9. पूर्ण कलश- कलश मंगल एवं शुभ का द्योतक है तथा पूर्ण कलश अभ्युदय का सूचक माना जाता है। परमात्मा का जीवन आत्म रूपी कलश, ज्ञान रूपी जल, एवं समता रूपी सुधारस से परिपूर्ण होता है। जो उन्हें आत्म स्वरूप की प्राप्ति करवाता है।