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पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण...247
की अनुभूति करने हेतु बोलियों का आयोजन किया जाता है। कई बार मानस पटल पर यह प्रश्न उभरते हैं कि स्वप्नों के चढ़ावे क्यों और किन भावों से उसकी बोली का लाभ प्राप्त करना चाहिए?
इसके निम्नोक्त कारण होने चाहिए
1. गज- तीर्थङ्कर की माता पहला स्वप्न महाबलवान ऐरावत हाथी का देखती है जो सम्पूर्ण नगर के अभ्युदय एवं गर्भस्थ शिशु के तीर्थ स्थापक और मोहदल रूपी शत्रुओं के विनाश करने का सूचक है। इस स्वप्न की बोली लेने वाले श्रावक को उस समय जड़-चेतन का भेद कर सकू ऐसा आत्मबल एवं धर्म वृद्धि में सहायक पुत्र आदि के प्राप्ति की भावना करनी चाहिए।
2. वृषभ-माता दूसरे स्वप्न के रूप में श्वेत कमल के पत्तों से भी अधिक कान्तिवान सुदृढ़ वृषभ को देखती है। यह वृषभ धर्म का प्रतीक है। जिस प्रकार वृषभ अधिक भार वहन कर सकता है वैसे ही तीर्थङ्कर चतुर्विध संघ के वाहक होते हैं और सत्य धर्म के संस्थापक होते हैं।
इस स्वप्न की बोली लेने वाले को जीवन में धर्म कर्तव्यों के पालन की शक्ति प्राप्त होती है तथा उसे संघ शासन की वृद्धि में सहायक बनने एवं सत्यान्वेषी बनने की भावना करनी चाहिए।
3. सिंह- कल्पसूत्र के अनुसार तीर्थङ्कर की माता तीसरे स्वप्न में सुवर्ण के समान देदीप्यमान सौम्य मुद्रा वाले सिंह को देखती है जो शुभ का सूचक माना गया हैं। सिंह पराक्रम, पुरुषार्थ, साहस आदि का प्रतीक है। जो गर्भस्थ बालक के पराक्रमी एवं आत्म शत्रुओं के विनाशक होने का संदेश देता है। इसी के साथ जिस प्रकार सिंह वनराज है वैसे ही ये त्रिलोक के स्वामी हैं। ___ यह चढ़ावा लेने वाले श्रावक को आत्म स्वरूप की प्राप्ति हेतु सिंह की भांति पराक्रमी होने की भावना करनी चाहिए।
4. लक्ष्मी- चौथे स्वप्न में तीर्थङ्कर की माता हिम पर्वत पर विराजित, सन्दर रूपवती, कमलासना लक्ष्मी के दर्शन करती है। यह उनके कैवल्य लक्ष्मी एवं आत्म ऐश्वर्य से संपन्न होने की सूचक है इसी के साथ यह तीर्थंकर के राजामहाराजा, इन्द्र- धरणेन्द्र आदि से पूजित होने के श्रेष्ठ भावों का सूचन करती है।
इस स्वप्न का बहुमान एवं चढ़ावे लेने वाले परिवार को भौतिक संपत्ति एवं संपदा के साथ आभ्यंतर ज्ञान लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।