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246... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
पाठकों के द्वारा विशेष फल सुनकर अत्यन्त हर्षित और आनन्दातिरेक से झूम उठते हैं। तीर्थङ्कर के च्यवन दिन से ही माता-पिता की सुख-समृद्धि, यश-कीर्ति आदि में निरन्तर वृद्धि होती है ।
दिगम्बर मतानुसार तीर्थङ्कर के गर्भ में आने से छह माह पूर्व देवता गण नगर की सुंदर रचना कर देते है एवं नगर में पन्द्रह माह तक रत्नों की वर्षा होती है। नगरवासीजन धन-धान्य आदि से समृद्ध हो जाते हैं।
सर्वप्रथम माता को सोलह स्वप्न आते हैं जो तीर्थङ्कर के आगमन की पूर्व सूचना देते हैं। उनका गर्भ कल्याणक देव- इन्द्र इसलिए मनाते हैं कि उनमें गर्भ से ही आत्मज्ञान एवं विश्वकल्याण की भावना छिपी होती है। उनके गर्भ में आते ही माता-पिता की सुख-समृद्धि उत्तरोत्तर बढ़ती है। इधर स्वर्ग में विशिष्ट वाद्य ध्वनियाँ होने लगती हैं, जिससे सौधर्म इन्द्र को ज्ञात हो जाता है कि तीर्थङ्कर गर्भ में आ चुके हैं। तब इन्द्र करोड़ों देवी-देवताओं के साथ प्रभु की नगरी में पहुँचकर अपूर्व गर्भोत्सव मनाता है। नृत्य गान एवं वाद्य ध्वनि से आकाश गूँज उठता है। जनता अपूर्व आनन्द की अनुभूति करती है।
जब तीर्थङ्कर का जन्म होता है इन्द्र ऐरावत हाथी पर बैठकर असंख्य देवदेवियों के साथ नगर की तीन प्रदक्षिणा देते हैं । इन्द्राणी माता के निकट मायामयी बालक को सुलाकर बाल तीर्थङ्कर को लेकर इन्द्र को सौंपती है। इन्द्र हजार नेत्र बनाकर तीर्थङ्कर के दिव्य रूप को देखता है और इतना भाव विभोर हो जाता है कि सुमेरु पर्वत पर एक हजार आठ कलशों से जन्माभिषेक कर ताण्डव नृत्य करने लगता है । तबले पर एक थाप पड़ने के पश्चात दूसरी थाप पड़ती है, तब तक तो वह ढाई द्वीप का चक्कर लगाकर बिजली की तरह राजभवन में आकर नाचने लगता है। सभी देव - देवियाँ, इन्द्र-इन्द्राणियाँ सहज ही थिरक उठते हैं। इस स्थिति का सही अनुभव तो साक्षात दृष्टा ही कर सकते हैं, अदृष्टा तो मात्र कल्पना ही कर सकते हैं।
चौदह स्वप्नों की अलौकिकता एवं प्रतिकात्मकता
गर्भ अवतरण के दौरान तीर्थङ्कर की माता जिन चौदह स्वप्नों को देखती है वे परिवार, संघ और समूचे राष्ट्र की ऋद्धि, ऐश्वर्य एवं अभ्युदय के प्रतीक हैं। पर्युषण पर्व के दिनों में स्वप्नों की महिमा को विश्रुत एवं उनके साक्षात फल