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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ... 245 उपार्जन कर लिया कि वे पुरुषादानी कहलाए और आज भी इस पृथ्वी पर अनेक जीवों के उद्धार में हेतुभूत बन रहे हैं। इन कल्याणकों को जब स्वयं तीर्थङ्करों की आत्मा भी अहोभाव पूर्वक मनाती हैं और देवी-देवता गण भी अपने भोगविलासमय जीवन को त्यागकर उल्लास पूर्वक यह महोत्सव मनाते हैं तो सामान्य लोगों के द्वारा कर्म निर्जरा के इस अवसर को शक्ति अनुसार अवश्य मनाया जाना चाहिए। यह च्यवन और गर्भ अवतरण उस आत्मा के लिए अंतिम क्रिया है और समस्त जीवों को आत्म सुख और अभूतपूर्व शांति का अनुभव करवाती है। इसी कारण इस कल्याणक महोत्सव की उपादेयता है। च्यवन कल्याणक के द्वारा यह भी अवगत होता है कि भोग की चरमता देवलोक में है तो त्याग की चरम सीमा मानव जीवन में ही है। च्यवन कल्याणक कौन मनाते हैं? जब साक्षात तीर्थङ्करों का च्यवन होता है तब समस्त सम्यगदृष्टि देवीदेवता यह कल्याणक मनाते हैं। प्रतिष्ठादि के कार्यक्रमों में इसका अनुकरण करते हुए नाटक के रूप में कुछ गृहस्थ श्रावकों के द्वारा उस दृश्य को प्रत्यक्ष उपस्थित किया जाता है। विराजित गुरु भगवंत भी इस पर विशेष प्रकाश डालते हुए उपस्थित जन मेदिनी के साथ इसे मनाते हैं। च्यवन कल्याणक की जानकारी कैसे होती है? तीर्थङ्करों का च्यवन होने पर सर्वप्रथम माता के द्वारा परम कल्याणकारी, शुभ सूचक चौदह (दिगम्बर परम्परा के अनुसार सोलह ) स्वप्न देखे जाते हैं। यह तीर्थङ्करों के आगमन की पूर्व सूचना होती है। प्रथम देवलोक के सौधर्म इन्द्र को अपने अवधिज्ञान के द्वारा इसकी पूर्व अनुभूति हो जाती है। इसी के साथ सौंधमेन्द्र का आसन भी डोलायमान होता है । इन्द्र अवधिज्ञान का उपयोग कर तीर्थङ्कर की दिशा में सात-आठ पाँव आगे जाकर शक्रस्तव द्वारा उनका गुणगान करते हैं तथा 'परमात्मा का जन्म शीघ्र हो' ऐसी भावना भाते हैं। तत्पश्चात नंदीश्वर द्वीप में जाकर अष्टान्हिका महोत्सव मनाते हैं। महारानी दृष्ट स्वप्नों को शुभ सूचक जानकर अपने प्राणनाथ को उन स्वप्नों से अवगत करवाने एवं उनका पुण्य फल ज्ञात करने हेतु शयन कक्ष में जाती है। राजा उस विषय में चिंतन कर सामान्य फल बताते हैं तथा स्वप्न
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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