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244... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन पंच कल्याणक के आध्यात्मिक प्रयोजन
पंच कल्याणक उत्सव का मुख्य हार्द यह है कि साक्षात तीर्थङ्कर भगवान के अभाव में उनके द्वारा प्रदर्शित एवं निरुपित मुक्ति मार्ग को निरन्तर आलोकित रखा जाए। इस प्रयोजन से तदाकार जिन बिम्बों की स्थापना की जाती है। यह उत्सव जगज्जनों को अज्ञानी से आत्मज्ञानी, रागी से वीतरागी, अल्पज्ञ से सर्वज्ञ
और भक्त से भगवान बनने की पारमार्थिक एवं व्यावहारिक विधि का निदर्शन करवाने के प्रयोजन से भी किया जाता है।
जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक प्राणी सम्यक पुरुषार्थ द्वारा परमात्म पद प्राप्त कर सकता है। इस सिद्धान्त को स्पष्ट करना भी इस पवित्र अनुष्ठान का उद्देश्य है। यह उत्सव जगज्जनों का शान्तिपथ प्रदर्शक भी है। इन सभी कारणों से इस महोत्सव को अति उल्लास पूर्वक मनाते हैं।
1. च्यवन कल्याणक च्यवन कल्याणक का अर्थ
किसी भी तीर्थङ्कर पुरुष का माता के गर्भ में अवतरण होना च्यवन या गर्भ कल्याणक कहलाता है। च्यवन का सामान्य अर्थ है- एक स्थान से दूसरे स्थान में गति करना। तीर्थङ्कर का जीव देव या नरक गति का आयुष्य पूर्ण कर अन्तिम भव के रूप में माता की कुक्षि में अवतरित होता हैं उस प्रक्रिया को च्यवन कल्याणक कहा जाता है। च्यवन कल्याणक क्यों मनाएं?
जब भी तीर्थङ्करों के जीव का च्यवन होता है और वे माता के गर्भ में आते हैं तब सम्पूर्ण लोक में कुछ समय के लिए एक विशिष्ट प्रकाश आलोकित हो जाता है। जगत में धर्म तीर्थ की स्थापना करने वाले और समस्त जीव राशि के लिए समान रूप से “सवि जीव करूं शासन रसी" की भावना रखने वाले अरिहंत परमात्मा का साक्षात्कार अल्पकाल में होने वाला है। इस भावना से ओत-प्रोत होकर देवी-देवता उत्कृष्ट भावों से नंदीश्वर तीर्थ में जाकर अष्टान्हिका महोत्सव करते हैं। इस भक्ति उत्सव में अनंत कर्मों की निर्जरा और तीर्थङ्कर नाम कर्म का बंधन भी कई जीव कर लेते हैं। भगवान पार्श्वनाथ ने अपने पूर्व भव में 500 कल्याणकों का उत्सव मनाकर ऐसे प्रकृष्ट पुण्य का