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198... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
• लकड़ी या मिट्टी की प्रतिमा- आयु, श्रीबल और विजय प्राप्ति की सूचक है।
• मणिरत्न की प्रतिमा सर्व जन के लिए हितकारी होती है। • स्वर्ण की प्रतिमा पुष्टि लाभ देती है। • रजत की प्रतिमा यश प्रदान करती है। • तांबे की प्रतिमा सन्तान वृद्धि में निमित्त होती है।
• पाषाण की प्रतिमा बनवाने से अत्यधिक भूमि लाभ होता है।37 प्रतिमा निर्माण के लिए शुभाशुभ द्रव्य
आचार्य वर्धमानसूरि के निर्देशानुसार चन्द्रकांत और सूर्यकांत आदि सभी जाति के रत्नों की प्रतिमा सर्व गुण वाली समझनी चाहिए।
स्वर्ण, चाँदी और तांबा- इन धातुओं की प्रतिमा श्रेष्ठ होती है, किन्तु कांसा, सीसा एवं कलाई (रांगा) की प्रतिमा कभी भी नहीं बनवानी चाहिए। कुछ आचार्य धातुओं में पीतल की प्रतिमाएँ बनवाने के लिए कहते हैं, किन्तु मिश्र धातु (कांसा आदि) की प्रतिमा बनवाने का निषेध है अत: कितने ही आचार्य पीतल की प्रतिमा बनवाने का निषेध करते हैं।
यदि काष्ठ की प्रतिमा बनवानी हो तो श्रीपर्णी, चंदन, बिल्व, कदंब, लाल चंदन, पियाल, उदुम्बर और क्वचित् शीशम- इन वृक्षों की लकड़ी ली जा सकती है, शेष वृक्षों की वर्जित कही गई है। निर्दिष्ट वृक्षों की जिस शाखा से प्रतिमा बनवाना हो, वह निर्दोष एवं वृक्ष पवित्र भूमि में उगा हुआ होना चाहिए।
अपवित्र स्थान में उत्पन्न चीरा, मसा अथवा गाँठ आदि दोष वाले पत्थर का प्रतिमा हेतु उपयोग नहीं करें, परन्तु प्रतिमा के लिए दोष रहित, मजबूत, सफेद, पीला, लाल, कृष्ण और हरे वर्ण का पत्थर प्रयोग में लें।
पाषाण में संगमरमर अथवा ग्रेनाइट की प्रतिमा बनाना श्रेष्ठ है। निर्दोष दाग रहित श्वेत संगमरमर की प्रतिमा दर्शकों को निश्चय ही प्रफुल्लित करती है।38
यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि धात की प्रतिमाओं के लिए उपयोग की जाने वाली धातु नई हो। पुराने बर्तनों आदि को गलाकर उसकी प्रतिमा कदापि न बनवायें, क्योंकि वह महा अशुभ और अनिष्टकारी होती है। पोली एवं कृत्रिम द्रव्यों की प्रतिमा का निषेध क्यों?
वर्तमान युग में अनेकों कृत्रिम द्रव्यों की प्रतिमाएँ बनने लगी हैं।