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190... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन प्रतिमा शब्द के विभिन्न अर्थ __ प्रतिमा का शाब्दिक अर्थ है प्रतिबिम्ब। इस अर्थगत भाव को स्पष्ट करने के लिए बिम्ब, प्रतिकृति, आकृति, प्रतिरूप आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। बिम्ब का एक अर्थ छाया है। यह शब्द पारलौकिक प्रतिमाओं के लिए प्रयुक्त होता है। कहीं-कहीं प्रतिमा और बिम्ब दोनों को समान अर्थ में ग्रहण करते हैं।16 शुक्रनीति में 'अपि श्रेयस्करं नृणां देव बिम्बम लक्षणम्' कहकर प्रतिमा के लिए बिम्ब शब्द का व्यवहार किया गया है।
पाणिनी ने व्याकरणसूत्र ‘इव प्रतिकृतौ' में समान आकृति के लिए प्रतिकृति शब्द का प्रयोग किया है।17
प्रतिमा शब्द अति प्राचीनकाल से विश्रुत है। ऋग्वेद में यज्ञ के रूप में प्रतिमा शब्द का प्रयोग हुआ है।18 पतञ्जलि ने महाभाष्य में 'मौर्येर्हिरण्यर्थिभिः अर्चा प्रकल्पिता' कहते हुए प्रतिमा के लिए अर्चा शब्द का प्रयोग किया है तथा कुछ ऐसी प्रतिमाओं का उल्लेख किया है जिन्हें मौर्य राजा ने स्वर्ण प्राप्ति की इच्छा से बनवाई थी।
वस्तुत: प्रतिमा शब्द का प्रयोग उन्हीं मूर्तियों के लिए किया जाता है जो किसी न किसी धर्म या दर्शन से सम्बन्धित हो। प्रतिमा और मूर्ति में अन्तर ___ सामान्य मनुष्यों की आकृति मूर्ति कहलाती है जबकि तीर्थंकर पुरुषों, देवी-देवताओं एवं महापुरुषों की आकृति को प्रतिमा कहा जाता है। यद्यपि प्रतिमा और मूर्ति निर्माण की क्रिया दोनों ही शिल्पकला के प्रकार हैं परन्तु प्रतिमा निर्माण के लिए निश्चित नियमों एवं लक्षणों का विधान होता है जिसके फलस्वरूप कलाकार पूर्ण रूपेण स्वतन्त्र होकर उसका निर्माण नहीं कर सकता। साथ ही उसकी आन्तरिक कला की अभिव्यक्ति भी उसमें सम्पूर्ण रूप से संभव नहीं है। इसके विपरीत मूर्ति निर्माण में कलाकार स्वतन्त्र होता है और उसकी समस्त शिल्पगत दक्षता उसमें प्रस्फुटित हो जाती है। प्रतिमा का स्वरूप प्रतिकात्मक भी हो सकता है किन्तु मूर्ति का एक निश्चित आकार-प्रकार होना अवश्यंभावी है।