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जिन प्रतिमा-प्रकरण ...191 प्रतिमा के प्रकार
प्रतिमा के भेद-प्रभेदों की चर्चा विविध दृष्टिकोणों से की गई है। श्रीमद् भागवत के अनुसार 'चलाचलेति त्रिविधा प्रतिष्ठा जीवमन्दिरम्'- चल और अचल के भेद से प्रतिमा दो प्रकार की होती है।20 ___चल प्रतिमा- जो प्रतिमाएँ अस्थिर हों एवं आवश्यकतानुसार जिनका स्थानान्तरण किया जा सके वे चल प्रतिमा कहलाती है। यह हल्की होती है और इन्हें सरलता से सब स्थानों पर ले जाया जा सकता है। प्रतिमा विज्ञान में पूजा आदि के आधार पर इसके चार भेदों का उल्लेख प्राप्त होता है जैसे- नवरात्रि, गणेशपूजा आदि में स्थापित होने वाली मूर्तियाँ।21
अचल प्रतिमा- जो प्रतिमाएँ एक स्थान पर स्थिर रहती हैं उन्हें अचल या स्थिर प्रतिमा कहते हैं। पाषाण, काष्ठ, मणि, धातु आदि की प्रतिमाएँ अचल होती हैं। इनकी अर्चना एवं उपासना नित्य होती है पर इनका आह्वान, विसर्जन आदि नहीं होता। गोपीनाथ राव ने अचल प्रतिमा तीन प्रकार की बतलायी है।22
1. स्थानक- खड़ी हुई प्रतिमा 2. आसन- बैठी हुई प्रतिमा 3. शयन- लेटी हुई प्रतिमा
इसी प्रकार उपासना, उपकरण आदि के आधार पर भी प्रतिमाओं के विविध भेद किए गए हैं। इस विषयक विस्तृत जानकारी हेतु प्रतिमा विज्ञान (इन्दुमती मिश्र), प्राचीन भारतीय प्रतिमा विज्ञान एवं मूर्ति कला (वज्रभूषण श्री वास्तव), जैन प्रतिमा विज्ञान (मारुति नन्दन तिवारी), हिन्दू और जैन प्रतिमा विज्ञान (पंकजलता श्रीवास्तव) आदि पुस्तकें पठनीय हैं। प्रतिमाओं का प्राचीन इतिहास
- पूर्वकाल से ही प्रतिमा निर्माण के लिए अनेक प्रकार की वस्तुओं का उपयोग होता रहा है। प्राचीन ग्रन्थों में अनेकविध प्रतिमाओं का उल्लेख प्राप्त होता है जैसे कि रत्न प्रतिमा, स्वर्ण प्रतिमा, रजत प्रतिमा, ताम्र प्रतिमा, काष्ठ प्रतिमा, बालु प्रतिमा आदि। भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित अष्टापद तीर्थ में तीर्थंकरों के वर्ण अनुसार रत्न प्रतिमाएं स्थापित की गई है। उपाध्याय समयसुन्दर रचित शत्रुजय रास में उस तीर्थ के उद्धार काल में विविध द्रव्यों से निर्मित मूर्तियों का उल्लेख मिलता है।