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188... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
पाँच भाग के तीन भाग करें। उसमें ऊपर के दो भाग की कायोत्सर्ग
प्रतिमा तथा एक भाग की पीठ बनायें। 6. वास्तुसार प्रकरण के अनुसार द्वार की ऊँचाई के आठ भाग करें। उसमें
ऊपर के एक भाग को छोड़कर नीचे से गिनते हुए ऊपर के सातवें भाग के पुन: आठ भाग करें। इसके सातवें भाग में भगवान की दृष्टि रखना
चाहिए। 7. वसुनन्दिकृत प्रतिष्ठासार के निर्देशानुसार द्वार की ऊँचाई के नौ भाग करके
नीचे के छह भाग और ऊपर के दो भाग छोड़ दें। शेष सातवें भाग के नौ
भाग करके उसके सातवें भाग के ऊपर प्रतिमा की दृष्टि रखनी चाहिए।' 8. इसके अतिरिक्त स्फटिक, रत्न, मूंगा, सुवर्ण आदि बहुमूल्य धातुओं की
प्रतिमा स्थापित करने के लिए पूर्वोक्त नियमों का पालन करना आवश्यक नहीं है। रत्नादि की प्रतिमाओं को चैत्य के परिमाण के अनुसार या स्वयं
की इच्छानुसार भी बना सकते हैं। गर्भगृह में प्रतिमा की स्थापना कहाँ हो?
गर्भ गृह की पिछली दीवार से गर्भ गृह के मध्य बिन्दु तक के मध्य पृथक्पृथक् स्थानों में विभिन्न देवताओं की प्रतिमा स्थापित की जाती है अत: इस सम्बन्ध में तीन मतान्तर हैं
प्रथम मत- वास्तुसार प्रकरण के उल्लेखानुसार गर्भ गृह के पृष्ठ भाग की दीवार से गर्भ गृह के मध्य बिन्दु तक पाँच भाग करें। मध्य बिन्दु से प्रारम्भ कर पाँचवें भाग में यक्ष, गंधर्व, क्षेत्रपाल को स्थापित कर सकते हैं। चौथे भाग में देवियों की स्थापना, तीसरे भाग में जिनेश्वर देव, कृष्ण, सूर्य, कार्तिकेय, दूसरे भाग में ब्रह्मा तथा प्रथम भाग में मध्य बिन्दु से थोड़ा हटकर शिवलिंग स्थापित करें।
द्वितीय मत- दुसरे मत के अनुसार गर्भ गृह की पिछली दीवार से गर्भ गृह के मध्य बिन्दु तक दस भाग करें। मध्य बिन्दु से प्रारम्भ कर पहले भाग में ब्रह्मा, दूसरे भाग में हर और उमा, तीसरे भाग में उमा और देवियाँ, चौथे भाग में सूर्य, पाँचवें भाग में बुद्ध, छठे भाग में इन्द्र, सातवें भाग में अरिहंत देव, आठवें भाग में गणेश और मातृका, नौवें भाग में गंधर्व, यक्ष एवं क्षेत्रपाल तथा दसवें भाग में दानव, राक्षस, ग्रह और मातृका की स्थापना करनी चाहिए।10