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106... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन समय स्वयं का मुख पूर्व या उत्तर में रखें। ऐसा करने से सभी कार्य सुनियोजित ढंग से सफल होते हैं।
सूचना पट्ट (बोर्ड) कार्यालय की बाहरी दीवार पर लगायें। इसे मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार के समीप भी लगा सकते हैं। ध्यातव्य है कि मन्दिर की दीवार पर अलग से कील ठोक कर कोई भी सूचना पत्र अथवा आमन्त्रण पत्रिका नहीं टांगनी चाहिए, अन्यथा समाज में निरर्थक तनाव उत्पन्न हो सकता है। व्याख्यान हॉल ___मन्दिर धर्म मार्ग की प्राप्ति का विशिष्ट आलम्बन होने से गृहस्थ और मुनि सभी उपासक आते रहते हैं इसलिए धर्म सभाएँ भी अधिकतर इस परिसर के निकट ही समायोजित की जाती हैं और इसीलिए प्रवचन हॉल का निर्माण किया जाता है।
वास्तु नियम के अनुसार व्याख्यान हॉल का निर्माण मन्दिर के उत्तरी भाग में करना सर्वश्रेष्ठ है। इसका निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि प्रवचन कर्ता की चौकी दक्षिणी भाग में बनायी जाये तथा धर्माचार्य उत्तर की ओर मुख करके धर्म सभा को सम्बोधित करें। यदि दक्षिण में चौकी बनाना संभव न हो तो पश्चिम में बनायें, जिससे गुरु भगवन्त पूर्व मुखी होकर प्रवचन दे सकें।
इस सभागार का द्वार पूर्व, उत्तर या ईशान में ही बनायें। परिस्थिति वश दक्षिण-आग्नेय तथा पश्चिम-वायव्य में भी द्वार बना सकते हैं अन्यत्र नहीं। हॉल की ऊँचाई पर्याप्त रखें, किन्तु वह मुख्य मन्दिर से ऊँचा न हो। हॉल के बाहरी भाग में आग्नेय कोण की तरफ बिजली के मीटर, स्विच बोर्ड आदि लगायें। ईशान में कदापि न लगायें।
धर्म सभा की छत का रंग सफेद रखें अथवा अन्य रंगों का संयोजन इस प्रकार करें कि सभासदों अथवा आराधकों को सुख-शांति का अनुभव हो। यह ध्यान रखें कि प्रवचन की जगह पर ऊपर में बीम न हो।
स्वतन्त्र रूप से स्वाध्याय करने वाले श्रावक पूर्व या उत्तर की तरफ मुख करके बैठें। यदि इस कक्ष में आगम ज्ञान की आलमारियाँ और भंडार रखना हो तो उसे नैऋत्य भाग में ही रखें।
कदाचित सामाजिक अधिवेशन आदि के लिए इस कक्ष का उपयोग कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में सभापति नैऋत्य भाग में बैठे और उसका मुख उत्तर दिशा की ओर हो।