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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...105 पदार्थ की बनी हो तो उसे भी प्रवेश द्वार के बाह्य भाग में छोड़कर पश्चात दर्शन-पूजा के लिए मन्दिर में जाना चाहिए। कूड़ादान __ जिनालय की पवित्रता को बनाये रखने के लिए वहाँ प्रतिदिन सफाई करना जरूरी है। यदि नियमित रूप से झाड़ न लगाया जाये तो दर्शन-पूजन में मन की स्थिरता नहीं रह सकती है। दूसरे, सभ्य व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह निकले हुए कचरे को इधर-उधर न फेंककर निश्चित स्थान पर डालें।। ___जिनालय के कचरे को डालने हेतु कूड़ादान पश्चिम, दक्षिण अथवा नैऋत्य कोण में रखना चाहिए तथा उस कूड़ेदान को मन्दिर की दीवार से सटाकर नहीं रखना चाहिए। __यदि कूड़ादान पूर्व, उत्तर या ईशान में रखा जाये तो उससे समाज में मतभेद, अकाल मृत्यु, मानसिक अशान्ति आदि की संभावनाएँ बनी रहती है। माली एवं कर्मचारी कक्ष
मन्दिर की साफ-सफाई एवं पूजा में उपयोगी पुष्प वाटिका आदि का रखरखाव माली अथवा कर्मचारीगण करते हैं अत: इन लोगों को मन्दिर के निकट रखने की परम्परा है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार मन्दिर का परिसर विस्तृत हो तो कर्मचारियों के कक्ष दक्षिण-पश्चिम भाग में बनाने चाहिए। इनके कक्षों के द्वार पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही हों तथा फर्श एवं छत का ढलान भी पूर्व, उत्तर या ईशान तरफ हों। इनके द्वार पश्चिम या दक्षिण की ओर कदापि न रखें। .
यदि कारणवश पूर्वी या उत्तरी भाग में कर्मचारी कक्ष बनाना पड़े तो उसे मुख्य दीवार से दूर हटकर बनायें। कार्यालय एवं सूचना पट्ट
जिनालय एवं तत्स्थानीय समाज की गतिविधियों के सुचारू संचालन के लिए एक कार्यालय का होना नितान्त आवश्यक है।
वास्तु नियम के अनुसार यह कार्यालय मन्दिर परिसर के पूर्व या उत्तर में करें। अपरिहार्य स्थिति में पश्चिम दिशा में भी बना सकते हैं, किन्तु कक्ष का द्वार पूर्व या उत्तर दिशा में ही रखे। कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी गण कार्य करते