________________
104... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
पूजन सामग्री
यद्यपि पूजा करने वाले भाई-बहिन पूजा की कुछ सामग्री जैसे फल, नैवेद्य, अक्षत आदि घर से लेकर आते हैं किन्तु उन द्रव्यों को प्रायः मन्दिर में आकर ही थाली में सजाते हैं तथा दीपक और धूप मन्दिर में ही तैयार किये जाते हैं। यह कार्य मन्दिर के ईशान भाग में करना चाहिए। अपवादतः पूर्व अथवा उत्तर दिशा में भी कर सकते हैं। वस्त्र परिवर्तन ___ मन्दिर के बाह्य परिसर में पूजा के लिए वस्त्र परिवर्तन करना हो तो यह कार्य पूर्व, उत्तर अथवा ईशान दिशा में करना चाहिए तथा वस्त्र धारण करते समय उत्तर की ओर मुख रखना चाहिए। पाद प्रक्षालन
मन्दिर एक पवित्र स्थान है। यहाँ दर्शनार्थियों को शुद्ध वस्त्र आदि पहनकर आना चाहिए। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि देह शुद्धि बनाये रखने के लिए प्रवेश के पूर्व अपने पाँवों का भी प्रक्षालन करें, ताकि अशुचि बाहर रह जाये और प्रवेश कर्ता शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से शुद्ध हो जाये। ऐसी स्थिति में परमात्मा की पूजा सही मायने में सार्थक हो सकती है।
जिनालय सामान्यतः पूर्वाभिमुखी अथवा उत्तराभिमुखी होते हैं। दोनों ही स्थितियों में पाद प्रक्षालन का स्थान प्रवेश द्वार के निकट ईशान दिशा में रखना चाहिए। कदाचित किसी मन्दिर में पश्चिम दिशा में प्रवेश द्वार हो तो वायव्य दिशा की ओर पानी रखना चाहिए। इसी तरह दक्षिण दिशा में प्रवेश द्वार नहीं होता, कदाच ऐसा हो भी तो पाँव धोने का पानी आग्नेय कोण में न रखें। जल प्रवाह के लिए नाली का मुख पूर्व, उत्तर अथवा ईशान दिशा में ही रखना चाहिए। जूते-चप्पल
जिनालय में जूते-चप्पल पहनकर नहीं आना चाहिए। यदि कारणवश पहनना पड़े तो उन्हें मन्दिर के बाहर आग्नेय अथवा वायव्य कोण में रखना चाहिए।
धर्मायतनों में प्रवेश करने से पूर्व जूते-चप्पल का त्याग करना तो जरूरी है ही, किसी के पास यदि पर्स, बेल्ट, फाइल आदि चमड़े की अथवा अशुद्ध