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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि... 97
व्यन्तराधिष्ठित जंगल से काष्ठ आदि लाने पर वह व्यन्तर क्रोधित होकर जिनमन्दिर को नुकसान पहुँचा सकता है। दूसरे, पशुओं को शारीरिक या मानसिक कष्ट देकर अनुचित रीति से लाया गया काष्ठ आदि भी अशुद्ध है। स्वयं वृक्ष कटवाकर लाया गया काष्ठ आदि भी अशुद्ध है। 21
काष्ठ आदि दल ग्रहण में शकुन का महत्त्व
जिनालय के महान कार्य का आरम्भ करने हेतु ईंट, काष्ठ, पत्थर आदि के खरीदने की बात चलती हो अथवा उसे खरीदा जा रहा हो तो उस समय शकुन होना चाहिए, क्योंकि शकुन-अपशकुन के आधार पर भी काष्ठ आदि की शुद्धाशुद्धि का निर्णय किया जाता है। यदि शकुन हो तो दल आदि शुद्ध हैं और अपशकुन हो तो उसे अशुद्ध समझना चाहिए | 22
यहाँ नन्दी आदि बारह प्रकार के वाद्य यन्त्र, घण्टे आदि की शुभ ध्वनि, जल से भरे कलश, सुन्दर आकृति वाले पुरुष और मन आदि योगों की शुभ प्रवृत्ति शकुन है अर्थात इष्ट कार्य की सिद्धि के सूचक हैं तथा आक्रन्दन युक्त शब्द आदि अपशकुन है 23
पूर्वाचार्यों के मतानुसार शुभ मुहूर्त्त में खरीदे गये दल को जहाँ खरीदा गया हो वहाँ से दूसरी जगह ले जाने में भी शकुन और शुभ दिन आदि का ध्यान रखना चाहिए।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मन्दिर निर्माण के सम्बन्ध में जैनाचार्यों का अत्यन्त सूक्ष्म चिन्तन रहा है। 24
दल शुद्धि एवं शकुन आदि दर्शन के विषय में विवेकविलास, बृहत्संहिता, उपदेशप्रासाद, ओघनिर्युक्ति, बृहत्कल्पभाष्य, शकुनसारोद्धार, योगबिन्दु आदि ग्रन्थ भी पढ़ने योग्य हैं।
3. भृतकानति सन्धान द्वार
यहाँ भृतकान् + अतिसन्धान ऐसे दो शब्दों का संयोग है। इसका अर्थ है कि जिनमन्दिर निर्माण सम्बन्धी कोई भी कार्य करवाते समय मजदूरों ( कारीगरों) का शोषण नहीं करना चाहिए, अपितु अधिक मजदूरी देनी चाहिए। अधिक मजदूरी देने से इहलोक और परलोक में शुभ फल मिलते हैं। 25
इहलौकिक फल यह है कि निश्चित की गई मजदूरी से अधिक मजदूरी देने पर कारीगर सन्तुष्ट होकर पहले से अधिक काम करते हैं तथा पारलौकिक