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96... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
अशान्ति, धन हानि, असफलता आदि दुष्परिणामों की संभावना रहती हैं। इन दोषों को दूर करने के लिए शास्त्रोक्त विधि से प्रयत्न करना चाहिए। 19
यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्मसंग्रहवृत्ति (गा. 59, पृ. 354) श्राद्धविधि प्रकाश (6/12 की वृत्ति), बृहत्संहिता (53 / 91 ) निर्वाणकलिका (पृ. 10) आचारदिनकर (पृ. 148 ) इत्यादि ग्रन्थों में भी भूमि शुद्धि, भूमि परीक्षा एवं शल्योद्धार की चर्चा प्राप्त होती है।
2. दल विशुद्धि द्वार
आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं कि जिनमन्दिर निर्माण के लिए काष्ठ, ईंट पत्थर आदि साधन भी शुद्ध होने चाहिए । तब प्रश्न होता है कि कौनसी ईंट आदि शुद्ध कही जा सकती है? इसके जवाब में चार बिन्दु मननीय हैं
1. मन्दिर के लिए ऑर्डर देकर ईंट-पत्थर आदि नहीं बनवाने चाहिए। जो लोग आजीविका के उद्देश्य से ईंट आदि बनाते हैं उनसे योग्य कीमत चुकाकर ईंट आदि लाना चाहिए।
2. जिनमन्दिर निर्माण में अपेक्षित सभी ईंटे एक ही व्यक्ति के पास से नहीं लेनी चाहिए, अपितु समान आकार वाली ईंटे जहाँ भी प्राप्त होती हों उन सभी से निश्चित मात्रा में खरीदनी चाहिए क्योंकि एक मालिक के पास ऑर्डर देने पर जिनालय के निमित्त हिंसादि आरम्भ का दोष लग सकता है।
3. उचित कीमत चुकाकर ईंट आदि सामग्री खरीदनी चाहिए, अधिक खींचतान या रोष आदि प्रकट करके वस्तु नहीं लेनी चाहिए ।
4. मजदूर की शक्ति के अनुसार उससे ईंट आदि का भार वहन करवाना चाहिए। सामर्थ्य से अधिक भार उचकने पर मणका आदि खिसक जाये तो उसे हमेशा के लिए जैन धर्म के प्रति द्वेष - अरुचि हो सकती है। इससे जिनशासन की निन्दा भी होती है । इसलिए ईंट आदि को स्थानान्तरित करते समय भी विवेक रखना चाहिए | 20
जिनमन्दिर के लिए कैसा काष्ठ शुद्ध माना गया है ? इस विषय में यह कहा गया है कि जो काष्ठ समीपवर्ती जंगल आदि से लाया गया हो, सीधा हो, स्थिर हो, नया हो और गांठ आदि से रहित हो वही शुद्ध जानना चाहिए।
व्यन्तर अधिष्ठित जंगल आदि से लाया गया काष्ठ अशुद्ध है, क्योंकि