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अधम
मध्यम
82... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन __ योग- विष्कम्भ और मूल की प्रारम्भिक पाँच घड़ी, गंड और अतिगंड की छह घड़ी तथा वज्र और घात की नौ घड़ी वर्जित है। व्यतिपात और परिधि योग हमेशा ही निषिद्ध है। ___ यदि भूकम्प, दिशा दाह, राजा मृत्यु आदि का उत्पात हो जाये तो तीन दिन तक प्रतिष्ठा नहीं करवानी चाहिए।
लग्न शुद्धि-प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्य में द्विस्वभावी लग्न श्रेष्ठ, स्थिर स्वभावी लग्न मध्यम और चर स्वभावी लग्न जघन्य माना गया है परन्तु अत्यन्त बलवान शुभ लग्न युक्त चर लग्न हो तो मान्य है। चर लग्न आदि के स्पष्ट बोध हेतु निम्न कोष्ठक देखिए|चर लग्न
_ मष । कके | तुला । मकर | स्थिर लग्न | वृषभ । सिंह | वृश्चिक | कुंभ । | द्विस्वभाव लग्न | मिथुन | कन्या | धनु । मीन | उत्तम
वर्ष शुद्धि- सिंहस्थ-गुरु अस्त वर्ष, मास, दिन, नक्षत्र और मंगलवार को छोड़कर शेष सर्व प्रकार की शुद्धि विवाह मुहूर्त की भाँति देखनी चाहिए।
अयन शुद्धि- गृह प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, विवाह, मुंडन संस्कार, व्रत स्वीकार आदि शुभ कार्य उत्तरायण में (मकर आदि छह राशियों पर सूर्य हो तब) करना चाहिए। दक्षिणायन- कर्क आदि छह राशियों पर सूर्य हो तो उस समय शुभ कार्य करना वर्जित है।
__मास शद्धि- प्रतिष्ठा के लिए चैत्र, पौष एवं अधिक मास को छोड़कर शेष मिगसर आदि आठ महीने शुभ हैं तथा चैत्र महीने में मेष संक्रान्ति हो और पौष महीने में मकर संक्रान्ति हो तो उक्त दोनों माह भी शुभ हो सकते हैं।
शुभ महीनों में गुरु अथवा शुक्र बाल हो, वृद्ध हो अथवा अस्त हो तो वे महीने अशुभ हैं। ___ माघ मास में गृहमंदिर निर्माण का कार्य शुरू नहीं करना चाहिए, उससे अग्नि भय होता है परन्तु शिखरबद्ध मन्दिर का प्रारम्भ और बिम्ब प्रवेश हो सकता है। ____ आषाढ़ महीने में प्रतिष्ठा हो सकती है किन्तु कुछ आचार्यों के मतानुसार गंभारे में बिंब प्रवेश नहीं करवाना चाहिए।
तिथि शुद्धि- प्रतिष्ठा के लिए शुक्ल पक्ष की एकम, दूज, पंचमी,