________________
मन्दिर निर्माण का मुहूर्त्त विचार ... 83
दशमी, तेरस और पूनम तथा कृष्ण पक्ष की एकम, दूज और पंचमी - ये तिथियाँ शुभ फलदायी हैं।
बिम्ब प्रवेश - वास्तुसार प्रकरण के अनुसार शतभिषा, पुष्य, धनिष्ठा, मृगशिरा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, चित्रा, अनुराधा और रेवती इन नक्षत्रों में, शुभ वारों में तथा चंद्र, गुरु और शुक्र के उदय में जिनबिम्ब का नगर प्रवेश करवाना शुभ है।
नवमांश शुद्धि - लग्न शुभ हो किन्तु नवमांश अशुभ हो तो इष्ट सिद्धि नहीं होती और लग्न अशुभ हो किन्तु नवमांश शुभ हो तो इष्ट सिद्धि होती है, क्योंकि नवमांश बलवान होता है। अशुभ अंश में रहा हुआ शुभ ग्रह भी अशुभ फल देता है और शुभ अंश में रहा हुआ अशुभ ग्रह शुभ फल देता है इसलिए नवमांश शुद्धि अवश्य देखनी चाहिए।
प्रतिष्ठा कार्य में मिथुन, कन्या और धनु का पूर्वार्ध और मीन का नवमांश मध्यम है।
सामान्य शुद्धि - जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के दिन शनि बलवान हो, मंगल एवं बुध बलहीन हो तथा मेष और वृषभ में सूर्य और चंद्र होना चाहिए।
इस पाँचवें अध्याय में वर्णित विषयों से यह स्पष्ट हो जाता है कि मन्दिर निर्माण में ग्रह, नक्षत्र आदि ज्योतिष सम्बन्धी पक्षों का भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। योग, लग्न, मुहूर्त आदि की शुद्धि के आधार पर ही प्रतिष्ठा का प्रभाव देखा जाता है। वर्जित ग्रह-नक्षत्रों में ली गई प्रतिष्ठा कई बार जिनशासन की हीलना का कारण भी बन जाती है वहीं शुभ नक्षत्रों में किया गया कार्य समूचे राष्ट्र की अभिवृद्धि में सहायक बनता है। पाठक वर्ग इस संदर्भ में अवगत हो पाए यही मंगल भावना।
सन्दर्भ - सूची
1. वास्तुसार प्रकरण, 1/22
2. मुहूर्त्त चिंतामणि टीका, 12/15
3. देवशिल्प, पृ. 358
4. आचार्य जयसेन प्रतिष्ठा पाठ, श्लो. 43-44 5. त्रिषु - त्रिषु च मासेषु, मार्गशीर्षादिषु क्रमात् । पूर्व दक्षिणे तोयेश, पौत्स्लयाशाक्र मादमुः ।।
विश्वकर्मा प्रकाश, गेहारम्भ प्रकरण, 8