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64... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
और दर्शन करने से मनुष्यों के समग्र पाप नष्ट होते हैं, धर्म की वृद्धि होती है तथा अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है | 2
जिनालय एवं जिनबिम्ब निर्माण के लाभ
भारतीय परम्परा में मन्दिरों एवं प्रतिमाओं का अपना विशिष्ट स्थान है। सामान्य उपासक भी अपने आराध्य देव का स्मरण एवं दर्शन कर कल्याण के मार्ग पर आरूढ़ हो जाता है। जैन शास्त्रों में परमात्म उपासना के साथ-साथ प्रभु मन्दिर एवं प्रभु प्रतिमा बनवाने का भी अत्यधिक महत्त्व बतलाया गया है।
सामान्यतः जो गृहस्थ श्रावक अपनी क्षमता के अनुरूप प्रभु का मंदिर बनवाता है, वह असीम पुण्य का अर्जन करता है तथा वर्तमान एवं भविष्य दोनों को सुख-समृद्धि से भरपूर करता है। प्रभु मन्दिर बनवाने का अवसर अनेकों जन्म के पुण्य संचय से उपस्थित होता है।
शिल्प रत्नाकर में जिनमन्दिर के निर्माण का पुण्य फल दर्शाते हुए कहा गया है कि
कोटि वर्षोपवासश्च तपो वै जन्म जन्मनि । कोटि दानं कोटि दाने, प्रासाद फल कारणे । ।
एक नूतन जिनालय का निर्माण कराने वाले उपासक को करोड़ों वर्षों के उपवास, जन्म-जन्मान्तर में किया गया तप तथा करोड़ों दानों में करोड़ दान इन सभी सुकृत्यों का एक साथ फल मिलता है। 3
प्रासाद मंडन में जिनालय निर्माण की फलश्रुति का निरूपण करते हुए बताया गया है कि
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काष्ठ पाषाण निर्माण, कारिणो यत्र मन्दिरे । भुंजतेऽसौ च तत्र सौख्यं, शंकर त्रिदशैः सहः । । स्वशक्त्या काष्ठ मृदिष्टका, शैल धातु रत्नजम् । देवतायतनं कुर्याद् धर्मार्थ काममोक्षदम् ।। देवानां स्थापनं पूजा, पापघ्नं दर्शनादिकम् । धर्मवृद्धि र्भवेदर्थः, कामो मोक्षस्ततो नृणाम् ।। कोटीघ्न तृणजे पुण्यं, मृण्मये दशसं गुणम् ऐष्टके शतकोटिघ्नं, शैलेऽनन्तं फलं स्मृतम् ।।
जो उपासक लकड़ी अथवा पाषाण का मन्दिर निर्मित करवाता है उसे