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________________ 32... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना का प्रावधान है। यदि इन विधानों की परिपालना में स्खलना हो जाये, तो उस सम्बन्ध में प्रतिक्रमण करना चाहिए। कर्तव्यों के प्रति जरा सी असावधानी भी साधक के लिए उचित नहीं है। __3. 'असद्दहणे'- शास्त्र प्रतिपादित आत्मा आदि अमूर्त तत्त्वों की सत्यता के विषय में सन्देह, शंका, अश्रद्धा उत्पन्न होने पर प्रतिक्रमण करना चाहिए। स्पष्ट है कि आत्मा आदि अमूर्त पदार्थों को प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा सिद्ध करना संभव नहीं है, वे तो आगम आदि प्रमाणों के द्वारा ही सिद्ध किये जा सकते हैं। उन अमूर्त तत्त्वों के सम्बन्ध में यह सोचना कि 'वे हैं या नहीं' यदि इस प्रकार मन में अश्रद्धा उत्पन्न हुई हो तो उसकी शुद्धि के लिए आत्मार्थी को प्रतिक्रमण करना चाहिए। 4. "विवरीय परूवणाए'- आगम विरुद्ध एवं असत्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने पर प्रतिक्रमण करना चाहिए। ____ तीर्थंकर पुरुषों ने हिंसा आदि दुष्कृत्यों के सेवन का निषेध किया है, उन दुष्प्रवृत्तियों का प्रतिपादन करना आगम विरुद्ध है। यदि असावधानी वश कभी प्रतिपादन कर दिया हो, तो उसकी प्रतिक्रमण द्वारा शुद्धि करें और भविष्य में पुनरावर्त्तन न हो इसका संकल्प करें। __ जैन विचारणा के अनुसार कौनसा प्रतिक्रमण किसके द्वारा किया जाना चाहिए। उसका संक्षिप्त वर्गीकरण निम्न प्रकार है• पच्चीस मिथ्यात्वों, चौदह ज्ञानातिचारों और अठारह पापस्थानों का प्रतिक्रमण गृहस्थ और श्रमण सभी को करना चाहिए। पंच महाव्रतों, तीन योगों का असंयम एवं गमन, भाषण, याचना, समिति, गुप्ति, मल-मूत्र विसर्जन आदि से सम्बन्धित दोषों का प्रतिक्रमण साधु-साध्वियों को करना चाहिए। पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों के 75 अतिचारों का प्रतिक्रमण व्रती गृहस्थ को करना चाहिए। • संलेखना के पाँच अतिचारों का प्रतिक्रमण संलेखना व्रत धारण करने वाले साधकों को करना चाहिए।4।। उक्त वर्णन के आधार पर यह तथ्य स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि प्रतिक्रमण मात्र अतीतकाल में लगे हुए दोषों की परिशुद्धि ही नहीं करता है,
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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