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26... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
वह कितना ही सावधान होकर चले, फिर भी कभी वासना-विकार में, कभी क्रोध-लोभ में, तो कभी मोह-माया में उलझ कर भूल कर ही लेता है और उससे चारित्र एवं नियम रूपी चदरिया मलीन हो जाती है। भले ही हम संसारी प्राणी कितने ही संभल कर चलें। एक कहावत है
काजल की कोटड़ी में, लाख हुँ सयानो जाय ।
काजल की एक रेख, लागे पुनि लागे हैं।। आत्मकृत भूलों का निरीक्षण एवं पुन: न दुहराने का संकल्प करने हेतु प्रतिक्रमण किया जाता है। भूल या गलती जीवन की विकृति है। इस विकृति से शीघ्रतया मुक्त हो सकें, एतदर्थ बाह्य भूलों को चार भागों में बाँटा गया है, क्योंकि इस वर्गीकरण के आधार पर उनका सुधार त्वरागति से किया जा सकता है। गल्तियों के चार रूप ये हैं- 1. अज्ञानजन्य अज्ञात भूलें 2. आवेश पूर्ण भूलें 3. योजनाबद्ध भूलें और 4. नहीं चाहते हुए भी होने वाली भूलें।
• अज्ञानजन्य भूलें- जिसकी बुद्धि अविकसित है, समझ कम है, उम्र से नादान है, ऐसे बच्चों आदि के द्वारा की गई भूलें अज्ञानजन्य कहलाती हैं। नासमझी के कारण, जैसे बच्चे द्वारा पिताजी की मूंछे खींच लेना, माता के मुख पर तमाचा मार देना, नादानी में लात मार देना, गोद में लेने वाले के कीमती वस्त्रों को मलमूत्र से गंदा कर देना तथा पागल व्यक्ति के द्वारा माता को बहिन
और पत्नी को माता कह देना, ये अज्ञानजन्य भूले हैं। व्यावहारिक स्तर पर इस प्रकार की भूलें क्षम्य मानी गई हैं। धर्म के क्षेत्र में भी इनका कोई महत्त्व नहीं है। ____ यदि समझदार व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार की भूलें की जायें तो उसे प्रतिकार स्वरूप दण्ड भी दिया जा सकता है। लेकिन नादान शिशु के लिए ऐसा नहीं है, कारण कि उसके मन में अपमानित करना, बदला लेना अथवा स्वार्थ सिद्ध करना जैसी कोई मनोवृत्ति नहीं होती है। वह केवल नादानी के कारण उक्त प्रकार की चेष्टाएँ करता है।
• आवेशजन्य भूलें- जिसकी बुद्धि विकसित हो उठी है, समझदार है, उम्र से कुछ परिपक्व है, ऐसे व्यक्तियों के द्वारा आवेग, आवेश या क्षणिक उत्तेजना के द्वारा की गई भूलें आवेशजन्य कहलाती हैं। इस प्रकार की भूलें प्राय: प्रतिकूल व्यवहार, अघटित घटना, अभीप्सित वांछा की अपूर्ति, अपेक्षा की उपेक्षा या अभिमान पर ठेस पहुंचने पर होती हैं। क्योंकि उक्त स्थितियों में व्यक्ति