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________________ 18... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 5. यत्किंचित मिथ्या प्रतिक्रमण- सजगता पूर्वक जीवन यापन करते हुए भी प्रमाद अथवा असावधानी वश किसी भी प्रकार का असंयम रूप आचरण हो जाए तो उसी क्षण उस भूल को स्वीकार कर, उसके प्रति पश्चात्ताप करना, यत्किंचित मिथ्या प्रतिक्रमण है। 6. स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण - निद्राकाल में विकार या वासनाजन्य कुस्वप्न आने पर उस पाप की शुद्धि के लिए निर्धारित श्वासोश्वास परिमाण कायोत्सर्ग करना, स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण है। उपरोक्त प्रतिक्रमण के छह प्रकारों का मुख्य सम्बन्ध श्रमण की जीवन चर्या से है। 47 दिगम्बर परम्परा के मूलाचार में निक्षेप दृष्टि से प्रतिक्रमण के छह प्रकार बतलाये गये हैं, जो निम्नानुसार है 1. नाम प्रतिक्रमण - अयोग्य नामों का उच्चारण न करना अथवा प्रतिक्रमण सम्बन्धी पाठों का उच्चारण करना, नाम प्रतिक्रमण है। 2. स्थापना प्रतिक्रमण - सरागी देवों की मूर्त्तियों या अन्य आकारों से अपने परिणामों को हटाना अथवा प्रतिक्रमण में परिणत हुए प्रतिबिम्ब की स्थापना करना, स्थापना प्रतिक्रमण है। 3. द्रव्य प्रतिक्रमण - मकान, खेत आदि दस प्रकार के परिग्रहों का, उद्गम, उत्पादन और एषणा दोषों से दूषित वसतियों का, अयोग्य उपकरण एवं भिक्षा आदि का तथा जो तृष्णा, मद और संक्लेश के कारण हैं उन द्रव्यों का त्याग करना अथवा प्रतिक्रमण शास्त्र के ज्ञाता द्वारा उसमें उपयोगवान न रहते हुए प्रतिक्रमण करना, द्रव्य प्रतिक्रमण है। 4. क्षेत्र प्रतिक्रमण - जल, कीचड़ और त्रस - स्थावर जीवों से संकुल क्षेत्र में आने-जाने का त्याग करना अथवा जिस क्षेत्र में रहने से रत्नत्रय की हानि हो उसका त्याग करना, क्षेत्र प्रतिक्रमण है । 5. काल प्रतिक्रमण - काल के आश्रय या निमित्त से होने वाले अतिचारों से निवृत्त होना, काल प्रतिक्रमण है। 6. भाव प्रतिक्रमण - मिथ्यात्व, असंयम, कषाय, राग-द्वेष, आहार आदि संज्ञा, निदान, आर्त्त - रौद्र आदि अशुभ परिणाम और पुण्याश्रवभूत शुभ परिणाम से निवृत्त होना भाव प्रतिक्रमण है। 48
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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