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________________ 14... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 5. 'तत्तिव्वज्झवसाणे' - तत् + तीव्र + अध्यवसाय का अर्थ - पूर्वोक्त ध्यान का तीव्र होना है। अंग्रेजी में इसे Power of imagination (पावर ऑफ इमेजिनेशन-कल्पना शक्ति) के समकक्ष कहा जा सकता है। 6. 'तद्दट्ठोवउत्ते'- तदर्थ + उपयुक्त का अर्थ है - उसी के अर्थ में उपयोग युक्त। इसे अंग्रेजी में Visualisation (विजुएलाइजेशन - दूरदृष्टि ) कहा जा सकता है। 7. 'तदप्पियकरणे'. तदर्पितकरण का अर्थ है- सभी करणों को उसी के विषय में अर्पित करना। अंग्रेजी में इसे I dentification (आइडेन्टीफिकेशनउससे साक्षात्कार करना) कहा जा सकता है। 8. 'तब्भावणभाविए'- तद्भावना + भावित का अर्थ है - उसी की ही भावना से भावित होना। इसे अंग्रेजी में Complete Absorption (कम्पलीट एब्जोर्पशन-सम्पूर्ण रूप से ग्रहण करना) कहा जा सकता है। यहाँ भाव शब्द के अनेक अर्थ उल्लेखित करने का अभिप्राय उसके विविध रूपों को दर्शाना एवं प्रतिक्रामक द्वारा भाव के उत्कृष्ट स्वरूप को प्राप्त करना है | 36 त्रिविध- प्रतिक्रमण तीनों काल से सम्बद्ध है अतः काल की अपेक्षा से प्रतिक्रमण के तीन भेद हैं 1. अतीत का प्रतिक्रमण - आत्म निन्दा द्वारा अशुभ योग से निवृत्त होना, अतीत काल का प्रतिक्रमण है। 2. वर्तमान का प्रतिक्रमण- संवर द्वारा अशुभ योग से निवृत्त होना, वर्तमान काल का प्रतिक्रमण है। 3. अनागत का प्रतिक्रमण - प्रत्याख्यान द्वारा अशुभ योग से निवृत्त होना, अनागत काल का प्रतिक्रमण है। 37 साधारणतया यह समझा जाता है कि प्रतिक्रमण अतीतकाल में लगे हुए दोषों की परिशुद्धि करता है, किन्तु प्रस्तुत वर्णन से स्पष्ट होता है कि प्रतिक्रमण केवल अतीत काल में लगे दोषों की ही शुद्धि नहीं करता, अपितु इससे वर्तमान और भविष्यकाल के दोषों की भी शुद्धि होती है। मूलाचार के तृतीय अधिकार में अकस्मात होने वाले समाधि मरण से सम्बद्ध तीन प्रकार के प्रतिक्रमणों का उल्लेख किया गया है - 1. सर्वातिचार
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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