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प्रतिक्रमण आवश्यक का स्वरूप विश्लेषण ... 13
रूप से करने योग्य है। किन्तु बशर्ते द्रव्य प्रतिक्रमण करते हुए भाव प्रतिक्रमण में प्रवेश करने हेतु प्रयासरत रहें।
भाव प्रतिक्रमण - लोक-परलोक की कामना एवं कीर्ति, यश, सम्मान, आदि की अभिलाषा से रहित, एकांतिक कर्म निर्जरा की भावना, अंतरंग उपयोग तथा जिनाज्ञानुसार किया जाने वाला प्रतिक्रमण, भाव प्रतिक्रमण है | 32 भाव प्रतिक्रमण के द्वारा आत्मा पुनः अपनी शुद्ध स्थिति में पहुँच जाती है। चूर्णिकार जिनदासगणी कहते हैं कि सम्यग्दर्शन आदि गुणयुक्त जो प्रतिक्रमण होता है वह भाव प्रतिक्रमण है। 33 आचार्य भद्रबाहु लिखते हैं कि भाव प्रतिक्रमण तीन करण एवं तीन योग से होता है । 34
आचार्य हरिभद्रसूरि ने उक्त नियुक्ति गाथा पर विवेचन करते हुए एक प्राचीन गाथा को उद्धृत कर कहा है कि मन, वचन एवं काया से मिथ्यात्व, कषाय आदि दुर्भावों में न स्वयं गमन करना, न दूसरों को गमन करने की प्रेरणा देना और न गमन करने वालों का अनुमोदन करना, यही भाव प्रतिक्रमण है | 35
वस्तुतः भाव प्रतिक्रमण करते समय शरीर को स्थिर कर आवश्यक सूत्रों का चिन्तन, उनके अर्थों का मनन एवं पूर्वकृत दोषों का अवलोकन करते हुए आलोचना पूर्वक शुद्धिकरण किया जाता है। भाव प्रतिक्रमण करने वाले के अन्तर्मानस में पापों के प्रति ग्लानि होती है तथा कृत अपराधों को पुनः न दुहराने का दृढ़ संकल्प होता है।
अनुयोगद्वारसूत्र में प्रस्तुत 'भाव' शब्द का विश्लेषण करते हु उसके निम्न अर्थ किये गये हैं- 1. 'तच्चित्ते' = तत् + चित् में चित्त का अर्थ सामान्य उपयोग है। अंग्रेजी में इसे Attention ( अटेंशन - उसका उपयोग उसमें लगाना) कहा जा सकता है।
2. 'तम्मणे' - तन्मन में मन शब्द का अर्थ- विशेष उपयोग से है। अंग्रेजी में इसे Intrest (इन्ट्रेस्ट - रूचि) कहा जा सकता है।
3. 'तल्लेस्से' - तल्लेश्या शब्द का अर्थ - उपयोग विशुद्धि से है। अंग्रेजी में इसे Desire (डिजायर - इच्छा) कहा जा सकता है।
4. 'तदज्झवसिए' - तदध्यवसाय का अर्थ - जैसा भाव वैसा ही भाषित स्वर है अथवा जैसा स्वर वैसा ही ध्यान करना है । अंग्रेजी में इसे Will (विलआत्मबल / आंतरिक लगन) कहा जा सकता है।