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12... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
प्रतिक्रमण का मूल उद्देश्य-आत्मविशोधन एवं भावविशुद्धि है अत: इस अपेक्षा से प्रतिक्रमण के मूल या अवान्तर भेद नहीं हो सकते हैं, यद्यपि कर्ता और कर्म की विविधता एवं भावनात्मक तरतमता के आधार पर इसके भेदप्रभेदों की चर्चा इस प्रकार ज्ञातव्य है
द्विविध- अनुयोगद्वार में आचरण की दृष्टि से प्रतिक्रमण के दो प्रकार बतलाये गये हैं- 1. द्रव्य प्रतिक्रमण और 2. भाव प्रतिक्रमण30
द्रव्य प्रतिक्रमण- एक स्थान पर अवस्थित होकर बिना उपयोग के, मात्र यशप्राप्ति की अभिलाषा से प्रतिक्रमण करना, द्रव्य प्रतिक्रमण है। इस प्रतिक्रमण के अन्तर्गत पाठों का उच्चारण यंत्र की तरह चलता है, त्यागने योग्य दोषों के चिन्तन का अभाव होता है,पाप कर्म के प्रति मन में ग्लानि नहीं होती और बारबार कृत स्खलनाओं का पुनरावर्तन चलता रहता है अत: यह प्रतिक्रमण शुद्ध प्रतिक्रमण नहीं कहलाता है। द्रव्य आवश्यक के विविध रूपों को समझना आवश्यक है जैसे- भाव आवश्यक के मूल्य को समझने के लिए जिस साधक के द्वारा सूत्र पाठों का सम्यक उच्चारण किया गया हो, जिसे सूत्र पाठ स्मृति में हो, जो अक्षरों से मर्यादित हो, शिक्षित आदि पाँचों से युक्त हो, ह्रस्व-दीर्घ रूप से शुद्ध उच्चरित करता हो, एक अक्षर भी कम-अधिक नहीं कहता हो, अक्षरों का उच्चारण गूंथी हुई माला के समान करता हो, अस्खलित बोलता हो, दूसरे पदों के साथ मिलाता नहीं हो, ऐसे उदात्त आदि घोषों से सहित, कण्ठ और होठ से बाहर निकला हुआ तथा वाचना, पृच्छना, परावर्तना, धर्मकथा से युक्त होने पर भी प्रतिक्रामक (प्रतिक्रमणकर्ता) उपयोग शून्य हो तो, उसका वह प्रतिक्रमण द्रव्य प्रतिक्रमण कहलाता है।31
इसका सार यह है कि प्रतिक्रमण करते समय सूत्र पाठों का उच्चारण शुद्ध रूप से किया जा रहा हो और तद्योग्य क्रिया भी निर्दिष्ट मुद्रा आदि पूर्वक की जा रही हो उस क्रिया में तन्मयता और तच्चित्तता न हो, तो वह द्रव्य रूप है। इस सन्दर्भ में प्रश्न उठता है कि उपयोग रहित प्रतिक्रमण करने पर लाभ क्यों नहीं होता है? ऐसा नहीं है, किन्तु बिना पथ्य की औषधि के समान कम होता है। जितना समय प्रतिक्रमण क्रिया में व्यतीत होगा उतने समय तक निश्चित ही पाप क्रिया से विरत होने का लाभ मिलेगा। द्रव्य क्रिया भाव का मूल कारण है, क्योंकि बाह्य क्रिया करते-करते कब विरति भाव पैदा हो जाए और क्षण भर में पापमल को नष्ट कर दें, इसलिए द्रव्य प्रतिक्रमण हेय नहीं है, अपितु निश्चित