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10... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
इस विषय में राजा और चित्रकार कन्या का दृष्टान्त कहा गया है- एक राजा ने चित्रशाला का निर्माण करने हेतु दूर- सुदूर से चित्रकारों को बुलाया। कुछ चित्रकार स्थानीय थे। एक बार उस नगर के चित्रकार की कन्या अपने पिता के लिए भोजन लेकर जा रही थी । राजा घोड़े को सरपट दौड़ाता हुआ उधर से निकला। लड़की ने सड़क से हटकर अपनी जान बचाई। वह चित्रशाला में पिता की प्रतीक्षा करने लगी। उस समय उसने मयूरपिच्छ का चित्र बनाया । इतने में ही राजा परिभ्रमण करता हुआ वहाँ आया और उस चित्रगत मयूरपिच्छ को असली समझकर हाथ से उठाना चाहा । नखों पर आघात लगा तो कन्या हँस पड़ी। राजा ने हँसने का कारण पूछा तो वह बोली- मेरी मंचिका के तीन ही पाये हैं, आज तुम चौथे मिल गए। राजा के द्वारा इसका रहस्य पूछे जाने पर उसने स्पष्ट तो किया किन्तु छह महीनों तक कथाओं में उलझाए रखा । किंचिद् समय बीतने के पश्चात कन्या ने एकान्त में अपने आपसे कहा - 'तू यह गर्व मत करना कि तूं राजा की प्रिया है।' राजा ने यह सुना और उसके यथार्थ पर प्रसन्न होकर उसे अग्रमहिषी बना दिया। यह द्रव्य निंदा है।
सारांश है कि स्वयं के द्वारा किये गये दुष्कार्यों की निन्दा (पश्चात्ताप ) करने से चित्रकार कन्या की तरह उच्चपद की प्राप्ति होती है।
7. गर्हा- गुरुजन, वरिष्ठजन आदि की साक्षी पूर्वक कृत पापों का पश्चात्ताप करना अथवा गुरु के समक्ष दुष्कार्यों का निवेदन करना, अथवा अशुभ आचरण को गर्हित समझना, गर्हा कहलाता है। 28 'परेषां ज्ञापनं गर्हा'सामान्यतया निन्दा आत्मसाक्षी पूर्वक की जाती है और गर्हा गुरुसाक्षी एवं आत्मसाक्षी उभय पूर्वक होती है।
आवश्यकटीका में इस विषय पर परिमारक स्त्री का उदाहरण निर्दिष्ट है - एक ब्राह्मण अध्यापक की पत्नी किसी पिंडारक के प्रति आसक्त थी। वह नर्मदा नदी के उस पार रहता था। ब्राह्मण पत्नी वैश्यदेव की बलि करती थी। उसने पति से कहा- मुझे कौओं से भय लगता है । ब्राह्मण ने उसकी रक्षा के लिए छात्रों को नियुक्त कर दिया। एक दिन एक छात्र को यह ज्ञात हुआ कि यह ब्राह्मण पत्नी प्रतिदिन मगरमच्छों से भरी हुई नर्मदा नदी को तैर कर जाती है और कहती है मैं कौओं से डरती हूँ। उस छात्र ने एक बार उसे कहा