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8... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
एक धनाढ्य वणिक ने विशाल हवेली बनाई। एक बार वह वणिक अपनी हवेली पत्नी को सुपुर्द कर देशान्तर चला गया। कुछ समय व्यतीत हुआ। हवेली का एक खंड गलित-पलित होकर गिर गया। वणिक पत्नी ने सोचा- इतने विशाल मकान का एक कोना गिर जाने से भला क्या अनर्थ होगा? उसने उसकी उपेक्षा कर दी। इधर उसी मकान के एक ओर पीपल का अंकुर प्रस्फुटित हो गया। सेठानी ने लापरवाह की । कालान्तर में उसके विस्तार से सारा हर्म्य ह गया। सेठानी ने सोचा- यदि मैं प्रारम्भ से ही सावचेत रहती तो यह स्थिति पैदा नहीं होती। इस कथा का सारांश है कि न्यूनतम दोष की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जो अत्यल्प दोषों की उपेक्षा करता है वह वणिक् पत्नी की भाँति संयम धर्म से भ्रष्ट होकर दुःखी हो जाता है।
3. प्रतिहरण– 'परि' उपसर्ग पूर्वक 'हृ' धातु (हरण करना) से 'ल्युट् ' प्रत्यय लगकर प्रतिहरण शब्द बना है । सम्यक प्रकार से विराधना का परिहार करने वाली क्रिया, अशुभ योग का परिहरण करने वाली क्रिया अथवा जिस -क्रिया के द्वारा अशुभ योगों का अथवा अतिचारों का परिहार (निवर्त्तन) हो, वह परिहरण कहलाता है। 24
प्रतिक्रमण के इस नाम पर कुलपुत्र और दुग्ध घट की कापोती का उदाहरण द्रष्टव्य है
एक कुलपुत्र ने दो व्यक्तियों को दो-दो घड़े दिए और उनसे कहा- गोकुल से दूध ले आओ। दोनों उस ओर चल दिए । घड़ों को दुग्ध से भरकर कावड़ में रख दिए और पुन: घर की ओर प्रस्थित हुए। गृह-गमन के दो भाग थे। एक ऋजु किन्तु ऊबड़-खाबड़ तथा दूसरा वक्र किन्तु आपत्ति रहित। एक ऋजु मार्ग से आगे बढ़ा, किन्तु पथ ऊँचा - नीचा होने से ठोकर लगी और दोनों घड़े फूट गए। दूसरा वक्र मार्ग से लौटा, किन्तु मार्ग निरापद होने से सुरक्षित घड़ों सहित घर पहुँच गया।
इसका भावार्थ है कि विषम स्थानों अर्थात अशुभ योगों का परिहार करने वाला द्वितीय पुरुष की भाँति सुखपूर्वक अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। 4. वारणा - वारणा शब्द वारि (वृ + णिच्) रोकना, निषेध करना, इस अर्थवान् धातु से ल्युट् प्रत्यय संयुक्त होकर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ हैनिषेध करना और तात्पर्य है- प्रमाद आदि दोषों का निषेध करना, अपने