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________________ 224... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना प्रतिक्रमण करें और वैसा योग न हो तो अकेले भी करें। परन्तु उस समय गुरु की स्थापना अवश्य करें। सत्रह प्रमार्जना ___ खमासमण देते एवं वंदन करते समय शरीर के 17 स्थानों की प्रमार्जना अवश्य करनी चाहिए। इसकी विधि इस प्रकार है3 -दाहिने पैर के कमर के नीचे के भाग से प्रारम्भ कर पीछे में एड़ी तक का पूरा __भाग, पीछे की कमर का मध्य भाग तथा बाएँ पैर के कमर के नीचे से एड़ी तक का पूरा भाग-ऐसे तीन स्थान। 3-उपरोक्त प्रकार से दाहिने पाँव का अग्रिम भाग, मध्य भाग तथा बायें पाँव का अग्रिम भाग- ऐसे तीन स्थान। 3-नीचे बैठते समय तीन बार आगे के स्थान का प्रमार्जन करना। 2-दाहिने हाथ में मुँहपत्ति लेकर ललाट (मस्तक) के दाहिनी तरफ से प्रमार्जन करते हुए सम्पूर्ण ललाट, सम्पूर्ण बायां हाथ नीचे कोहनी तक, वहाँ से उसी प्रकार बायें हाथ में मुँहपत्ति लेकर बायीं तरफ से प्रमार्जन करते हुए सम्पूर्ण ललाट, सम्पूर्ण दाहिना हाथ नीचे कोहनी तक। फिर चरवले की डंडी को मँहपत्ति से प्रमार्जन करना। 3-फिर तीन बार चरवले के गुच्छे का मुँहपत्ति से प्रमार्जन करना। 3-अवग्रह से बाहर निकलते समय तीन बार आसन का प्रमार्जन करना। इस प्रकार 3+3+3+2+3+3=17 स्थानों पर प्रमार्जना की जाती है। द्वादशावर्त वन्दन में अन्तर्निहित पच्चीस आवश्यक 1. 'इच्छामि खमासमणो वंदिलं जावणिज्जाए निसीहिआए अणुजाणह' इस पद से अवग्रह में प्रवेश के लिए आज्ञा मांग कर वहाँ मस्तक झुकाना- यह पहला आवश्यक। 2. इसी तरह दूसरी बार के वांदणा में मस्तक झुकाना, दूसरा आवश्यक। 3. 'खमणिज्जो भे किलामो' यह पद बोलते हुए दोनों हाथों को मस्तक पर लगाना- तीसरा आवश्यक। 4-6. 'अहो कायं काय' ये तीन पद बोलना- तीन आवश्यक। 7-9. दूसरी बार के वन्दन में भी यही तीन पद बोलने से- तीन आवश्यक। इस सूत्र में 'अहो कायं काय'और जत्ताभे? जवणि ज्जं च भे?' ये
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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